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महावीर चरित्र ।
आलिंगन कर लिया, पीछे दोनों मुनाओंसे गाढ़ आलिंग किया । इस प्रकार उसने अपने दोनों पुत्रोंके आलिंगन करनेमें मानों पुनरुक्ति करदो-दो वार आलिंगन किया । ॥ ९१ ॥ राजाका शरीर हंपके अंकुरोंसे व्याप्त हो गया । उसने आलिंगन करके दोनों पुत्रोंको बहुत देर में छोड़ा। इसके बाद वे पिताकी आज्ञासे उसके साय में राज सिंहासनपर ही एक भागमें मन्त्र होकर बैठ गये ॥ ९२ ॥ महाराजने क्षेमकुशल पूछा, परन्तु उसके उत्तर में कुमारके विजयलाभने ही उसकी मुनाओंक यथार्थ पराक्रमेका. निरूपण कर दिया । अतएव वह चुप होकर नीचे की तरफ देखने लगा । ठीक ही है जो महापुरुष होते हैं उनको गुणस्तुति हर्षका कारण नहीं होती ॥ ९३ ॥ इस प्रकार शरद ऋतुको चंद्रकलाकी तरहं समस्त दिशाओं में निर्मल यंशको फैलाता हुआ, और लोगोंको. उनकी रक्षा करके हर्षित करता हुआ, वह राजा अपने दोनों पुत्रोंके साथ साथ समस्त पृथ्वीका शासन करता था ॥ ९४ ॥
1. एक दिन, आश्चर्यसे जिसके नेत्र निश्चल हो गये हैं ऐसा द्वारपाल हायमें सोनेका बेंत - उड़ी लिये हुए राजाके पास दौड़ता हुआ आया और इस तरह बोला, किंतु जिस समय वह बोलने लगा उस समय 'खुशीसे जल्दी जल्दी बोलनेके कारण उसके वाक्य रुकने लगे ॥ ९५ ॥ वह बोला- “ कोई आकाश मार्गले आकर हजुरके दरवाजेपर खड़ा है । वह तेजोमय है, और उसकी मूर्ति आश्चर्य उत्पन्न करनेवाली है । वह आपके दर्शन करना चाहता है। मंत्र जो आपका हुकम हो वह किया जाय । " यह कहकर द्वारपाल चुप हो गया ॥ ९६ ॥ " हे सुमुख ! उसको जल्दी भीतर मेन
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