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१२] . 'महावीर चरित्र । है। इस विषयमें वनके रक्षकोंने क्या किया सो आपके सुननेमें पीछे आ जायगा ॥ ५७॥ वनपालने उपवनके विपयमें जो समाचार सुनाया उसको जानकार-सुनकर विश्वनंदीको क्रोध आगया तो भी उसका चित्त धीर था इस लिये उसने उस वातको किसी दूसरी हंसी दिल्लगीकी बातसे उड़ा दिया ॥ ५८ । इसके बाद स्नानपूर्वक भोजनादिकके द्वारा उसका खूब सत्कार कराकर स्वयं महाराज, और उनके इस प्रसादको पाकर विनयसे नन्त्रीभूत हुआ वनपाल दोनों ही शोमाको प्राप्त हुए ॥ ५९॥ .
विश्वनंदीने अपनी नीति और बढ़ी हुई प्रताप शक्तिके द्वारा शत्रुको नन्न बादिया । और वह भी शीघ्र ही नमस्कार करके तथा भेट देकरके विश्वनंदी आज्ञासे लौटकर चला गया ॥ ६ ॥
महाराजकी आज्ञाको सफल करके युवराज उसीसमय वहांसे (शत्रदेशसे) पूज्य रानलोकको वहां छोड़कर अपने देशको शीघ्र ही लौट आया। क्योंकि लौटना बहुत लम्बा था । अर्थात् मार्ग बहुत लम्बा था इस लिये आनेमें समय बहुत लगता किंतु विश्वनंदीको शीघ्र ही आना था इस लिये कार्य सिद्ध होते ही वह रानलोकोंको छोड़करके वहां शीघ्र ही अपने देशको लौट आया ॥ ६१ ॥ .
. विश्वनंदी शीघ्र ही अपने देशमें आ पहुंचा । आकर देखा कि. देशमेंसे देशको छोड़ २ कर लोग भाग रहे हैं। उसने अनिरुद्ध. नामके एक आदमीसे पूछा कि " कहिये तो यह क्या बात है." इस पर उसने जवाब दिया कि ॥६.२॥ " हे स्वामिन् ! विशाखनंदी • आपके उपवनके चारो तरफ भयंकर और मजबूत किलेको बनाकर
आपके साथ लड़ाई करना चाहता है। किंतु महारान, आप और