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महावीर चरित्र ।
'जिनेन्द्रदेवकी महापूजा करके अपने पुत्रका नंदन यह अन्वर्थ नाम . रक्खा । नंदन शब्दका अर्थ होता है आनंद उत्पन्न करनेवाला | यह 'पुत्र भी समस्त प्रजाके मनको आनंदित करनेवाला था इसलिये इसका भी नाम नंदन रक्खा || ४८ || पुत्रका मणिबन्ध ( पहुंचा ) ज्याघात रेखासे अंकित था । इसने बाल्यावस्था में ही समस्त विद्याओंका अभ्यास कर लिया । और शत्रुओं की सुंदरियाँको वैधव्य दीक्षा : देनेके लिये आचार्यपद प्राप्त कर लिया ||४९ || पुत्रने उस यौवनको • प्राप्त किया जो लीलाकी निधि है, बड़े भारी रागसहित रसरूप समुद्रका सारभूत रत्न है, मूर्तिरहित भी कामदेवको जीवित करनेचाला रसायन है, वेश्याओंके कटाक्षरूप वाणका अद्वितीय लक्ष-निशाना है ||१०|| उठते हुए नवीन यौवन के द्वारा छिद्रको पानवाल, अनेक प्रकारकी चेष्टा करनेवाले, फिर भी दृष्टिमें न आनेवाले और 'जिनको कोई भी पृथ्वीपति जीत नहीं सकता इस तरहके अंतः स्थित शत्रुओंको इस एकाकी वीरने जीत लिया था । भावार्थ- काम क्रोध आदिक अंतरङ्ग शत्रु हैं । ये यौवनके द्वारा छिद्र पाकर मनुष्य में'विशेषकर बड़े आदमियों में प्रवेश कर जाते हैं। पीछे अनेक प्रकार'की चेष्टा करने लगते हैं; क्योंकि कामादिकके निमित्तसे जीवोंकी क्या २ गति होती है वह सबके अनुभव में आई हुई है। ये इस 'तरह के शत्रु हैं कि जो आंखसे देखने में नहीं आते और भीतर प्रवेश कर ही जाते हैं । जिस प्रकार कोई शत्रु गुप्तचर या दूती आदिके द्वारा छिद्र मौका पाकर अपने शत्रुके भीतर बिना दृष्टिमें आये ही "प्रवेश कर जाता है, और पीछे अनेक प्रकारकी चेष्टा करके अपने उस शत्रुको नष्ट कर देता है, उसी तरह ये अंतरंग शत्र भी
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