________________
१० ]
महावीर चरित्र ।
"
उसका जन्म एक विख्यातवंशमें हुआ था । वह शत्रुओंके वंशके लिये दावानलके समान था । अर्थात् जिस तरह दावानल वांसों को जलाकर नष्ट कर देता है उसी तरह वह राजा भी अपने शत्रुओंके कुल्को नष्ट करनेवाला था ॥ ३७॥ वह प्रतापरूप सूर्यके लिये उदयाचल के समान, कलाओंके लिये पूर्णमासीके चन्द्रसमान, विनयरूप वृक्षके लिये वसंतऋतुके समान था । एवं मर्यादाकी उत्पत्ति स्थानका न्यायमार्गका समूह, और लक्ष्मीके लिये समुद्र के समान था ॥ ३८ ॥ . इस राजाका स्वभाव निर्मल था । राजाओंके योग्य सम्पूर्ण विद्याएँ इस महात्माको प्राप्त होकर इस तरह शोभाको प्राप्त हो गई, जिस "तरह रात्रि के समय मेघों का आवरण हटनाने पर आकाशमें तारागण शोभाको प्राप्त हो जाते हैं ||३९|| जो स्वभावसे ही शत्रुता रखनेवाले ये ऐसे शत्रु भी यदि उसकी शरण में भाते तो उनका भी वह पोषण करता, अर्थात् उनका राज्य आदि उनको ही लौटाकर उन पर दया करता । क्योंकि इस राजाका अंतरात्मा आई- कोमल था। जिस तरह तृण वृक्ष अथवा वन आदिको भस्म करनेवाली अग्निकी ज्वालाओंके समूहको समुद्र धारण करता है, उसी तरह इस राजाने भी अपने शत्रुओंको धारण कर रक्खा था ॥ ४० ॥ नंदिवर्धनने प्रजाकी विभूतिको बढ़ाने के लिये, बुद्धिरूप नलका सिंचन करके, अनेक इ· च्छित फलोंको उत्पन्न करनेवाले नीतिरूप कल्पवृक्षको बड़ा कर दिया । क्योंकिः सज्जन पुरुषोंकी समस्त क्रियाएँ परोपकारके लिये ही हुआ करती हैं ||११|| इस राजाका यश, जिसकी कि कान्ति खिले हुए कुन्दपुष्पके- समान स्वच्छ थी, सम्पूर्ण पृथ्वीतलको भलंकृत करनेवाला
"१. समुद्र के पक्ष : आर्द्र, शब्दका अर्थ शीतल करना चाहिये ।