________________
nrnArnemun.....
..AMARP-1
.MARAAAAAARAARAN-AAR
१७८ ] महावीर चरित्र । क्र-खेदकी वास है । मानों इस पश्चातापके कारणसे ही सूर्य उसी : समय नीचेको मुख कर गया ॥ ३३ ॥ बिल्कुल कुंकुमकी युतिको: धारण करनेवाला सुर्यका मंडल - दिनके अंतमें-सायंकालमें एमा, मालन पड़ता था मानों मुयने जो अपनी किरण संकोची, उन द्वारा जो कमलिनियोका राग जाकर प्राप्त हुआ वही सब इक्छा होगंगा है या उसीका एसा आवार बन गया है ॥ ३४ ॥ सूर्यको वारुणी (पश्चिम दिशा; दुसरे पक्षमें मदिरा). में रस-आशक्त देख । वर मानों निषेध करता हुआ-उसको ऐसा करनेसे रोवता हुआ दिन भी उसीके पास चला गया। ठीक ही है-जगतमें किसको उन्मार्गमें जाते हुए मित्रको नहीं रोकना चाहिये। ॥ ३५ ॥ कहीं जानकी इच्छा रखनेवाला कोई पुरुष जिस तरह अपने महान् : धनको फिर ग्रहण करने के लिये अपने प्रिय पुरुपोंके मां रख देता है, उसी तरह सूर्यन भी चक्रवाक युगलके निवट परितापको. रक्खा। भावार्थ-पश्चिम दिशाको जानेवाला सर्य अपने प्रिय चक्रवांकयुगलके पास अपना महान् धन-पासिलारकी धरोहर इस अभिप्रायसे रख गया कि सबेरे आकर मैं तुमसे अपना. यह धन लौटा. लंगा" ॥ ३६ ॥ अस्त हुए सुयको छोड़कर झरोंखोंके मार्गसे पड़ी हुई. दीप्तियोंने मानों जिसका कभी नाश नहीं हो सकता ऐसे सदा: प्रकाशमान रत्नदीपको पानके लिये ही क्या परके . भीतर स्थिति, की-॥ ३७ नम्र, जिसके कर (किरण, तथा हाथ )के आगेकी , श्री. मुकुलित हो गई है, अत्यंत राग (लाल, तथा प्रेम ):मय है : .आत्मा निस्की ऐसे विदा होते हुए सुर्यको रमणियोंने ठीक प्रियकी तरह आदर सहित देखा ॥३८. इस जगतमें पूर्वकी (पूर्व दिशाकी