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. तेरहवा सर्ग। . [१७७ लगी हुई हैं. वह तरुण भी क्या प्रशांत नहीं हो जाता है ! ॥२६॥ योगस्थान: साम दान आदिके : जाननेवाले मंत्रियोंसे केप्टिन रहते हुए भी वह उग्र नहीं हुआ । सर्पके मुखमें नो विप रहता है उसकी अग्निसे युक्त रहते हुए भी चन्दन या अपनी शीतलताको छोड़ देता है. ॥ २७ ॥ उसने कुलस्त्रीका ग्रहण कर रखा था तो मी नीतिमार्गका समुद्रं वह राना कामदेवके क्श नहीं हुआ था। कामदेवस्वरूरखीके रहते हुए भी निसके मनमें राग नहीं आता है वही धीर है ॥ २८ ॥ यह राना तीनों गाल (प्रातःकाल, मध्यान्हकाल, सायंकाल)गंध, माला, बलि-नैवेद्य, धूर, वितान-चंदोवा यां समस्त वस्तुओं के विस्तारमें भक्तिसे शुद्ध हुए हृदयसे जिनेन्द्रदेवकी पुजन करके बंदना करता था। गृहवा में रत रहनेवालोंका फल यही है ॥ २९ ॥ आकाशमें लगी हुई हैं पताका जिसकी और सुंदर वर्णवाली सुधः-कलईसे अच्छी तरह पुती हुई ऐमी इसकी बनवाई हुई मिनमंदिरोंकी पंक्ति ऐसी मालूम पड़ती थीं मानों उसकी मूर्षिती पुण्य-संपत्ति हो ॥ ३० ॥ निसका हृदय प्रशंसके द्वारा सदा भुषित रहता था ऐसे इस नीतिके जानने वाले राजा हरिषेणने मित्रों के साथ साथ अपने गुणों के समूहोंसे शत्रुओंका अच्छी तरह नियमन करके पूर्वोक्त रीतिसे चिरकाल तक राज्य किया.॥ ३१ ॥..... .....
एक दिन. इस हरिषेणके शांत कर दिया है 'भूरलका ताप.. जिसने ऐसे अत्यंत तीक्ष्ण प्रतापको देखकर मानों सजासे ही सूर्यने । अपने दुर्नयवृत्तोंसे आतथ लक्ष्मीको, संकोच लिया ॥ ३२ ॥ विस्तृत दावानलके समान किरणोंसे इस जगत्को मैंने तपायो यह. ...', '१२.: