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महावीर चरित्र |
तथा जिसने कांक्षाओं को दूर कर दिया है-निकांक्षित अंगका पालक जिसने अपनी आत्माको विचिकित्साओंसे हटा दिया है - निर्विचिकित्सा अंगका पालक, तथा निर्दोष हैं परिणाम जिसके ऐसा यह मुनि आगमोक्त मार्गोंके द्वारा सम्यक्त्वशुद्धिकी भावना करता था || भक्तियुक्त है आत्मा जिसकी ऐसा वह योगी प्रतिदिन यथोक्त' क्रियाओंके द्वारा उत्कृष्ट ज्ञानका और अपने - शक्तिके अनुरूप:
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चारित्रका तथा बारह प्रकारके ताका पालन करता था ॥ ६९ ॥ इस प्रकार चिरकाल तक विधुररहित चित्तवृत्तिके द्वारा प्रशमयुक्त मुनियोंके अग्रदको धारण कर अपनी आयुके अंत में विधिपूर्वक सल्लेखना त्रनको धारण कर मरण किया। यहां से कापिष्ठ-आठवें स्वर्ग में जाकर शुपविमान में वह विभूतिके द्वारा हुआ || ७० || अपने शरीरकी कांतिकी संपत्ति -बढ़ाता हुआ तथा इसी प्रकार 'देवानंद' इस अनुपम नामको अन्न - सार्थक वनाता हुआ बारह सागरकी है आयु जिसकी ऐसा वह -सुभग वहीं पर दिय अंगनाओंको राम-प्रेम उत्पन्न करता था
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और स्वयं हृदयमें वीतराग जिन भावानको धारण करता था. ॥ ७१ ॥ "इस प्रकार अशग कविकृत वर्धमान चरित्रमे 'कनकध्वज काठि ग़मन' नामक बारहवां सर्ग समाप्त हुआ
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तेरहवां सर्ग |
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शोमाको प्राप्त देवोंको आनंद:
श्रीमान और सत्यष जहां निवास करते हैं ऐसा इसी मात
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क्षेत्रमें अवंती नामका विस्तृत देश है । जो ऐसा मालूम पड़ता मानों मनुष्योंके पुण्यसे स्वयं स्वर्गलोग पृथ्वीपर उतर आया है