________________
११४ ] . महावीर चरित्र । ::::
mammimimirmaniramirmiri हुई अग्निकी ज्वालाओंसे आठों दिशाओंको चकित कर देता है.. निसकी रक्षा देव करते हैं, जो अक्षय है-कोई. उसका क्षय नहीं। कर सकता, जो सूर्यबिम्बके समान अति प्रकाशमान है, निसमें :एक हजार आरे हैं, जिसके द्वारा समस्त नरेन्द्र और विद्याधरोंको क्शमें कर रखा है, तथा जो अरिचक्र-शत्रुपमूहको मर्दित कर डालता है ॥१८-१९। इसी तरहसे जब वह उद्धत दूत बोल रहा था तब स्वयं पुरुषोत्तमने जिन्होंने युद्धका निश्चय कर लिया था उसको रोककर कहा कि "हमारे और उसके युद्धकै सिवाय:
और कोई भी इसकी परीक्षाकी कसौटी नहीं हो सकती ॥ ६ ॥ इसपर त्रिपिटके हुकुमसे शंख बजानेवालेने युद्धकी उद्घोषणा करने वाले शंखको बनाया । और उससे ऐसा शब्द .. हुभा जिससे कि. समस्त रानाओंकी सेनाओं के विल्कुल भीतरसें प्रतिध्वनि निकलने
गी।। ६१ ॥ रणभेरीकी अनि, जो कि जलके भारसे · मेघोंके शब्दकी मनमें शंका करनेवाले मयूरोको आनंद करनेवाली. थी, योद्धाओंको सावधान करती हुई दिशाओं में फैल गई ॥६२।। बंदीजनोंके द्वारा अपने नामकी कीर्तिकी स्तुति कराते हुए सैनिक लोग सत्र तरफसे जय जय शब्द करके रणभेरीके शव्दका अच्छी
तरह अमिनंदन. कर फुर्तीसे युद्ध करनेके लिये तैयारी करने लगे। · ॥ ६३ ॥. किती २ योद्धाका शरीर उसके हृदयके साथ २ युद्धके ।
हर्षसे फूल गया। इसीलिये अपने नौकरों के बार २. प्रयत्न ...करनेपर भी वह अपने कवचमें समा न सका ॥ १४ ॥ भ्रमर : समान काले लोहेके कवचको पहरे हुर तथा जिनमें से प्रभा निकल १ रही है ऐसी तलवारको घुमानेवाले किसी योद्धाने . जिसमें विली..
.