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घरात वरात दोनों जगह खलबली मच गई और सब लोगोंमें सनसनी फैल गई, परन्तु फूलीबाईका भाग्य बड़ा ही प्रबल था, उनका सौभाग्य अटल था इसलिये रोग असाध्य होनेपर भी और सब लोगोंके हताश होजाने पर वरराज सेट तिलोकचन्दजी चंगे होगये और फिर सब जगह आनन्दकी सुहावनी धूप खिल उठी। ___ इसके बाद कोई विशेष घटना नहीं हुई। फूलीबाईके भाई सेठ सेवारामजीके भी बढ़तीके दिन आये। आपने सांवतराम सेवारामके नामसे दुकान कायम की। दुकानकी बढ़ती देखकर गगलियर स्टेटकी ओरसे आप सरकारी अफीम गोदामके कारभारी बनाये गये। थोडे दिन बाद स्टेटके खजांची भी रहे और म्यूनिसिपालिटीका काम भी आपने किया। आप अब भी विद्यमान हैं। आप इस बुढ़ापेमें सब तरह सुखी हैं।
विवाहके बाद सेठ तिलोकचन्दनीने दुकानका मब काम स्वयं किया । आप व्यापारमें बड़े निपुण थे और सब भाई मिलकर सलाहके एक सूत्रसे बंधकर व्यापार करते थे। सेठतिलोकचन्दनी बड़े धर्मप्रेमी थे | आपकी इच्छा एक चैत्यालय बनवाकर उसीमें धर्मध्यान करनेकी थी। परन्तु किसी कारणसे उन्होंने फिर अपना विचार बदल दिया और अपनी धर्मपत्नी श्रीमती फूलीचाईकी खास सलाहसे उजैनके एक जीर्ण शीर्ण मंदिरके उद्धार करनेका दृढ़ संकल्प किया। आपने उसे फिरसे बनवानेकी नीव डाल दी और बनानेका काम प्रारम्भ कर दिया। .
दुःखके साथ लिखना पड़ता है कि उस मंदिरकी प्रतिष्ठा