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उन दिनों सेट माणिकचंदजीका स्वर्गवास हो चुका था इसलिये सेट मगनीरामभी सेठ और स्वरूपचंदजीको ही इस उत्सव की सब तैयारी करनी पड़ी थी । ये लोग खूब धूमधाम के साथ बरात ले गये थे ।
हैजेका प्रकोप घराती और बरातियों पर भी हुआ। सबसे पहिले फूलीबाईके पिता सेट सांवतगमजीको उसने घर दवाया और ऐन विवाह के दिन उक्त सेठ साहबको वह दुष्ट लेकर निकला । यह संसारकी विचित्र लीलाका बड़ा ही अच्छा उदाहरण हैं । जहां सवेरे गीत आनंद हो रहे थे, वहीं पर दोपहर के समय हायके हाय : शब्दने आकाशको गुंजा दिया और उस उक्तवकी महा लपटें शोक रूपी महासागर में जाकर सब शांत हो गई ।
सेठ साहवका अंतिम संस्कार कर लौटनेके बाद ही फिर उत्सवकी तैयारी होने लगी । घड़ी भर पहिले जो घर रोने चिल्लानेकी आवाजसे भर रहा था, वहीं घर घड़ी भर बाद ही फिर गाजेबाजेसे भरने लगा । यद्यपि उसमें सेठ साहबके शोककी लहर बार ' चार आकर धक्का देती थी तथापि वह विवाहक्रिया बड़े धूमके साथ समाप्त की गई।
पाटगण इतने में ही भाग्यका निपटारा न कर लें । थोड़ीसी विचित्रता सुननेके लिये और धैर्य रक्खं । जिस दुष्ट "हैजेने सबसे पहिले सेठ सांवतरामजी पर वार किया था 'अब वह दुष्ट वरातमें भी आ घुसा और उसने सबसे पहिले बरराज सेठ तिलोकचन्द्रजी पर ही अपना प्रभाव नमाया ! अब तो
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