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भोरुष
तहवि हु असमियतण्हो गेहे गंतूण सयलकलसजलं। निद्वविऊण निलीयइ पोक्खरिणीयाविकूवेसु ॥ ५७ ॥ ९८ पुत्राणां पीए तस्सलिलंमिवि गंगाइमहानईसु ओगाढो । ताओऽविहु सोसेई पलएव्व पयंडमत्तंडो ॥ ५८ ॥ तत्तो जलहिजलं पिय अंजलिसलिलं व पियइ नो तहवि । तस्स उपसमइ तण्हा अवि अहिययरं पवढेइ ॥५९॥ | in ताहे अपावमाणो कहिपि सलिलं समत्थभुवणेऽवि । अवलोइउं पत्तो सो संतत्तो पयत्तेण ॥ ६०॥ अह एगत्थ पएसे अइउंडो पूइयवो य (पूइथोव)सलिलोब(य) । तेणं दिट्ठो कूवो चिरेण परितुद्वचित्तेण ॥६१॥ पविसिउमसमत्थो दीहरज्जुणा बंधिऊण तणपूलं । सो खिवइ तत्थ तणहासमत्थदुक्खस्स पसमट्ठा ॥ ६२ ॥ तो तकट्ठियपूलयपेरंतगलंतविंदुसंदोहं । उहुं वियारियमुहो आसायंतो गमइ कालं ॥ ६३॥ जह तस्स वाविदीहियसायरसलिलेहिं अहयतण्हस । नो किंपि होज तेसिं तणग्गलग्गेहिं बिंदुहि ॥ ६४ ॥ एवं देवाणुपिया! तुम्हाणं पुवकालियभवेसु । उवभुत्तपवरपंचप्पयारसदाइविसयाणं ॥ ६५॥ पुणरवि सव्वाणुत्तरसपत्थविमाणपत्तसोक्खाण । तेत्तीसं अयराई निविग्धमणंतरभवंमि ॥ ६६ ॥ जइ भो महाणुभावा! तित्ती भोगे पडुच नो जाया। ता किं इमिणा होही भुत्तेणं तुच्छरजेण ? ॥ ६७॥ 181
॥१२॥ तो असुइसंभवेसुं तुच्छेतूं माणुसेसु भोएसु । अइयोव्वकालिएसु पजते दुहविवागेसुं ॥ ६ ॥ मुहमहुरेगुं आवइसहस्सहेऊसु निंदणिजेसु । साहुजणवजिएसुं मुहुत्तमवि मा कुणह संगं ॥ ६९ ॥