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महा०
चरित्र
भयवं ! किमेवमुवइसह पावनिरयाण बुद्धिरहियाणं । पचक्खपसूर्ण पिव अम्हाणं दढमजोग्गाणं ॥ ६८॥ सम्यक्त्वं गुरुणा भणियं मा वयसु एंरिस जेण जोग्गया तुज्झ । जाणिजइ संपन्ना संपइ पचक्खलिंगहि ॥ ६९॥ 4 कहमण्णहमेवंविहमहाडवीनिवडिया तए अम्हे । दिट्ठा पहपभट्ठा गाढस्समसुढिय(सिडिल)सव्वंगा ?॥७॥ कह तत्थवि दंसणमेत्तोऽवि चिरदिट्ठवलहजणे व्व । पुलयपडलाणुमेओ उप्पण्णो तुह पमोयमरो ? ॥७१॥2 कह वा भोयणसमओवणीयनियभोयणेण दाणमई । जाया अम्हाणुवरि खुहापिवासाभिभूयाणं ? ॥७२॥ एवंविहपरिणामो उप्पजइ नेव पुण्णरहियाणं । एवंविहा य अतिही न य चक्खुपहं पवर्जति ॥ ७३ ॥ रयणनिहाणं किं रोरमंदिरे किं मरंमि कप्पतरू । कत्थवि थलंमि जलकमलसंभवो हवइ कइयावि ? ॥४॥ ता एवंविहविघडंतवत्थुसंघडणलिंगसद्धेया । कहमिव तुज्झ न सद्धम्मजोग्गया भमुह ! होजा ? ॥ ५ ॥
जेणेरिस सामग्गी निरवग्गहपुण्णपगरिसवसेण । सिवलच्छिपेच्छियाणं निच्छयो घडइ मणुयाणं ॥ ७६ ॥8 किंच-आरियखेत्तुष्पत्ती कुलमकलंक नरत्तसंपत्ती । निरुवहयरूबलाहो रोगोरगदूरविगमो य ॥ ७७ ॥
आउयमवि पडिपुण्णं कलाकलावंमि कोसलं विमलं । साहूहिँ समं जोगो एत्तियमत्तं तए पत्तं ॥ ७८ ॥ ५॥ एत्तो एगयरंपिहु पणं व सकम्मपवणपडिहणिया । संसारमि भमंता अर्णतसत्ता ण संपत्ता ॥ ७९ ॥ तुमए पुण सबमिमं उवलद्धं पुण्णपगरिसवसेणं । ता एत्तो निरुवममोक्खसोक्खफलदाणदुललियं ॥ ८ ॥