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तत्कालीन परिस्थिति ।
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बातें अन्य भारतीय दर्शनोंसे सादृश्यता रखती हैं, परन्तु साथ ही 'उसमें इन दर्शनोसे इतनी खूबियां भी हैं जो उसे एक स्वतंत्र और स्वाधीन दर्शन प्रगट करती हैं । (See Jain Gazette Vol: XIX No. 3 P. 71 ) अस्तु चलिये अब उस समयका भी कुछ ज्ञान प्राप्त कर लें, जब भगवान महावीरजीने जन्म लेकर ant फिरसे अपने पूर्व तीर्थकरों की भांति बतलाया था ।
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तत्कालीन परिस्थिति
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" अतिशय देख धर्मको हानी । परम सभीत धरा अकुलानी ॥ "
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संसारकी परिस्थिति और कालचककी महिमाका अवलोकन हम पहिले कर चुके हैं। देख चुके हैं कि समय हमेशा एकसा नही रहता है । परिस्थिति संदैव पल्टा खाती रहती है। नई नई घटनाएँ सदैव घटित होती रहती हैं। आज जो बात ठीक थी, वही कल विपरीत मासने लगती है। भगवान महावीरने धर्मोपदे-. शमें यह जतला दिया था कि संसारमें ऐसी भी प्रकृतिकी आत्माएँ मौजूद हैं, जिन्हें अपने सच्चे आत्मखरूपका ज्ञान कभी भी नहीं होगा । वे सदैव संसारके संतप्तसागरमे गोते लगाती रहेंगीं । कभी ऊपर सतह पर आ जांवगी, तो कभी गहरे गढेमें चली जायगी । उनके ज्ञानको आवरण करनेवाली प्राकृतिक शक्तियाँ इतनी जटिल हैं कि वह कभी भी उस विचारी आत्माको सन्मार्ग
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