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जैनधर्म और हिन्दूधर्म।
उन्होंने सकल धर्मके मूल गुह्य ब्राह्मणधर्मका ब्राह्मणदर्शित : मार्गके अनुसार उपदेश दिया था।" (५-६- अ०) यह ब्राह्मणधर्म वेदोंमे वर्णित है। अस्तु, अब हमें देखना चाहिए कि इन वेदोमें है क्या ? और यह कब बने ? इनमें निरूपित धर्मका स्वरूप क्या है ? इन पनोंका सप्रमाण पूर्ण विवरण तो मि० चम्पतरायनी बैरिस्टरकी Key of Knowledge Pra. otical Path और अमड्मतसंगम नामक पुस्तकोंमें है, पर साधारणतया इनका उत्तर इस प्रकार होगा।
सम्थतिम वेद दुनिया में सबसे प्राचीन ग्रन्थ कहे जाते हैं। प्रथम तीर्यङ्कर श्री ऋषभदेव उनसे बहुत पहिले होचुके थे, यह हम ऊपर मिद कर चुके है । यही ऋषभदेव जैनधर्मके संस्थापक थे। इस प्रकार जैनधर्मके बहुत पीछे वेद बने थे। आधुनिक योरूपीयन विद्वान उनके दिपयमें कहते हैं कि वे उस समय बने, थे, जब कि आर्यसभ्यताके नवपछव भी विकसित नहीं हुए थे। और लोग प्राकृतिक शक्तियों-अग्नि, सूर्य, चन्द्र आदिसे अत्यन्त भयभीत थे। और उनकी पूजा किया करते थे। इसके अगाड़ी वे मानते हैं कि इन्ही शक्तियोंकी पूजा वन्दनाके मंत्रोंक समुदायरूप यह वेद हैं। पर उस समयके आर्योंकी सभ्यताका जब हम ध्यान करते हैं जैसी कि मि० विल्सन आदि यूरोपीय विद्वानोंने सिद्ध की है कि वे आधुनिक हिंदू समाजके तरह ही करीबर सभ्य थे, (देखो Practical Path p. 188) तब हम इस बातपर कभी भी विश्वास नहीं कर सके कि उस समयके हिं ऋषि इतने असभ्य और अज्ञानी थे जो प्राकृतिक शक्तियोसेर