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अवशेष तीर्थकर।
३७ ही खस्तिकाका भाव प्रकट है कि दो रेखाओंका आपसमें धन राशिके चिन्हरूपमें एक दूसरेके विमुख निकलना प्रकट करता है कि शुद्ध आत्मद्रव्य पुद्गल द्रव्यसे मिली हुई है। जिसके कारण वह चार गतियोंमें (देव, नर्क, मनुष्य, पशु) भ्रमण कर रही है। चार गतियोंको व्यक्त करनेके लिए इस धनराशि चिन्ह (+) के अतिम शिखाओंसे चार रेखाएं निकाली जाती हैं (5) इसके बाद ऊपर जो तीन बिन्दुकाएं जैन स्वस्तिकामें () रखी जाती हैं, उनसे यह उपदेश है कि इस भ्रमणसे निकलनेके लिए जयरत्नमय मार्ग अर्थात् सम्यकदर्शन, ज्ञान और चारित्र मोक्षका मार्ग है। और फिर खस्तिकाके शिखामागमें अर्धचंद्राकारके मध्य बिन्दुका होना प्रकट करता है कि रत्नत्रय मार्गसे संसारी (भ्रमता) जीव मोक्षस्थानमें पहुँचकर शुद्धखरूप आत्मद्रव्य (बिंदु)हो जाता है और परम सुख अनुभव करता है । जैन शास्त्रोमें मोक्ष स्थान अर्धचन्द्राकार माना है। इस प्रकार जैन स्वस्तिकाका भाव है। अस्तु, २३ तीर्थंकरोंके जीवनका ज्ञान प्राप्त करके चलिए इन तीर्थहरोंके धर्मके सम्बन्धमें कुछ ज्ञान और प्राप्त करलें।
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