________________
wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww
WAMA
भगवान महावीर। उसकी पूजा करते हैं। उसकी आवाज मिस्ल बहुतसी धाराओं के होती है ( मुकाशफा अ० १ ० १५) जो बहुत दूर तक सुनाई देती है। और जिनवाणी (इश्वरीय वाणी) वा श्रुति कहलाती है। " उसका मुख ऐसा चमकता है मानो हनार सूरज एक स्थानपर एकत्रित होगए हों। उसके पांव मट्टीमें तपाए गए पीतलकी तरह चमकदार होते हैं। उसके नेत्र अग्नि सदश प्रदीप्त होते हैं । " (मुकाशफ अ० १ आ० १४-१५ ईसाई वायवलके शब्दोमें वर्णित ) । दयाकी सच्ची मूरत वह धर्म प्रेमियोको सच्चे धर्मका उपदेश निर्वाण प्राप्त करने तक देता है जबकि उनकी आत्मा पुद्गलसे अलग हो जानेके कारण परमात्माके शुद्धरूप कर्म मरण दुःख और मूढतासे मुक्त और सर्वज्ञता अक्षयसुख अमर जीवन और कमी कम न होनेवाली शक्तिको प्राप्त होजाती है । ऐसी अवस्थामें पुद्गलके न होनेके कारण, जो आवाजके लिए आव श्यक है, फिर श्रुति अवस्थित नहीं रहती है। तीर्थकरों और अन्य पवित्र परमात्माओंकी, जिन्होने निर्वाण प्राप्त किया है, किसी प्रकारकी इच्छा मनुष्योंसे अपनी पूजा करानेकी नहीं होती है ।
और न वह वलि व अर्चनके उपलक्षमें किसी प्रकारकी वस्तुओ नियामतोको देनेका संकल्प करते हैं। वह इच्छा और वाञ्छासे रहित हैं। उनके गुण अवर्णनीय है। उनकी पूना मूर्तिपूना नहीं है कि आदर्श पूजा है । " ( असल्मनसंगम, व्या० ७ यां)
हिन्दी विप्रकोप भाग १ ० ३१-३३ १०२१८ परसे इस विषयमें गाना गाता है कि " जनमतगे, जीवके इस मंसारमें दुषण देनेवाले ज्ञानापरण, दनावरण. गोनीय, अन्तराय, वेदनीय,