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भगवान महावीर । छह कालोके भी यही नाम हैं । परन्तु उनका अनुक्रम अविसर्पिणीके विपरीत है। अर्थात् उसका प्रथम काल दुःखमा दुःखमा होगा और इसी क्रमसे अवशेष अन्य काल होंगे।
इस प्रकार अविसप्पिणीके प्रथम तीन काल और उत्सर्पिणीके । अन्तिम तीन काल भोगभूमिके नामसे विख्यात हैं । इनमें सांसारिक मुखोंका आनन्द है। इनमें मनुष्य जन्म लेता है, जीवन व्यतीत करता है, मृत्युको प्राप्त होता है, परन्तु किसी अवस्थामें भी दुःखका अनुभव नहीं करता है । प्रत्येक अपनी इच्छाकी पूर्ति कल्पवृक्षोसे करता है। अवशेष तीन काल कर्मभूमि कहलाते है। अर्थात् क्रिया-कर्तव्यका समय। इनमें मनुष्य जीवननिर्वाहके लिए कार्य करना पड़ता है, अपने जीवन के आरामके लिए श्रम उठाना पड़ता है, और भविष्य जीवनकी उत्तमताके लिए प्रयत्न करने पड़ते हैं । इन अंतिम तीन कालोंक प्रथम कालमें अर्थात् वर्तमान युग ( अविसर्पिणी ) के चतुर्थकालमें नियमसे २४ तीर्थकर अवतीर्ण होते हैं। और अन्य महापुरुष भी जन्म धारण 'करते हैं । इस प्रकार प्राकृतिक रीत्यानुसार कालचक्र है।