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भगवान महावीर
वीर दर्शन। "स्वध्यानमें लवलीन हो जब घातिया चारो हने । सर्वज्ञ-पोध निरागिताको पा लिया तब आपन ॥ उपदेश दे हिनकर अनेकों भव्य निजसम कर लिए। रविकिरण ज्ञान प्रकाश डालो 'वीर' मेरे भीहिए।"
• - पचाच्याची ___“ सौन्दर्यपूर्ण समय है। सरिता अपने मीठे कलरवनादसे मानों वीना बना रही है, वेलें लताएँ वृओसे लिपटकर नानों प्रणयका पाठ ही पढ़ा रही हैं। मनोहर मन्द मन्द पवन चल रही है, चंद्रके शुत्र और स्वच्छ प्रकाशले पृथ्वी और सरिता दूधके समान स्वच्छ और प्रकाशित दन रही है । रात्रिरूपी तरणी चन्द्रप्रकाश रूसी दुग्धने स्नानकर तातली दकियाने नुमजित पत्र पहिनकर बन्द्ररूप हीसके मुहमको शिरसर धाराकर मानो पनिधारो