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श्वेताम्बरको उत्पत्ति। दिगम्बरोके उत्तरमें यह गाथा पेश की थी, परन्तु वह यह भूल गए कि यह स्वयं उनके एक दूसरे आचार्यके कथनसे बाधित होती है। अतएव इस तरह भी प्रमाणित है कि इस समय दिगम्बरियोंकी उत्पत्ति न होकर श्वेताम्बरोंकी उत्पत्ति हुई थी।
और दिगंवर वेष तो जैन धर्ममें जैन धर्म इतना सनातन-प्राचीन है, इस ब्याख्याती पुटिने डॉ० जे० स्टीवेन्सन साहबके निम्न वाक्य भी उपयुक्त हैं:
" It is much more likely however, fro.a what is said above, that the Swetambar party originated about that time ( a century before A D.) and not the Digambar. " ( See the Prelace to Kalpa Sutra by Rer: J.Stevenson D. D P.XV.)
अर्थात् उपर्युक्त वर्णनसे यह विशेषतया प्रतीत होता है 'कि इस समय ( ईसवी सन् से एक शताब्दि पहिले ) श्वेताम्बर सम्प्रदायकी उत्पत्ति हुई थी, दिगम्बरियोंकी नहीं।
उपर वीर-संघके मतभेदका उल्लेख बौद्ध ग्रन्थोंने भी मिलता है। जैसे कि पूर्वमे मि० ला की पुस्तकके अनुसार उल्लेख किया है । मि० ला उसके पश्चात् कहते हैं कि “जैन संघमें जो भगवानकी निर्वाण प्राप्तिके वाद मतभेद पड़ा था, उससे म० बुद्ध और उनके मुख्य शिप्य सारीपुत्तने अपने धर्मका प्रचार करनेका विशेष लाभ उठाया प्रतीत होता है। 'पासादिक सुतंत' से ज्ञात होता है कि पावाके चन्द नामक व्यक्तिने मल्लदेशके सामगाममें स्थित आनन्दको महान् तीर्थकर महावीरके शरीरान्त होनेकी खपर दी थी । आनन्दने इस घटना के महत्वको झट अनु