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श्वेताम्बरकी उत्पत्ति। श्वेताम्बर न कहकर अर्धफालक कह दिया और उसके बहुत वर्षों • बाद (४५० वर्षके बाद) इसी 'अर्ध-फालक' सम्प्रदायके साधु
जिनचन्द्र के सम्बन्धकी एक कथा और गढ़ दी और उसके द्वारा श्वेताम्बर मतको चला हुआ बतला दिया। श्वेताम्बर मत जिनचंद्रके द्वारा वञ्चमीमें प्रकट हुआ था, अतएव यह आवश्यक हुआ किदुर्मिक्षके समय जो मत चला, उसका स्थान कोई दूसरा बतलाया जाय
और उसके चलानेवाले भी कोई और करार दिए जाय । इसी कारण अर्धफालककी उत्पत्ति उज्जयिनीमें बतलाई गई और उसके प्रवर्तकों के लिए स्थूलभद्र आदि नाम चुन लिये गये । स्थूलभद्रकी श्वेताम्बर सम्प्रदायमें उतनी ही प्रसिद्धि है जितनी दिगंबर संपदायेमें भगवान कुन्दकुन्दकी । इस कारण यह नाम ज्योंका त्यों उठा लिया गया और दूसरे दो नाम नये ले लिए गए। वास्तवमें 'अर्धफालक' नामका कोई भी संप्रदाय नहीं हुआ। भद्रबाहुचरित्रके पहिलेके किसी भी ग्रन्थमें इसका उल्लेख नही मिलता।" ___ इस प्रकार हमें दि० जैन ग्रंथोंसे श्वेतांबर संप्रदायकी उत्पत्तिका वर्णन मिलता है । जिससे प्रगट है कि स्त्री मुक्ति आदिमें मतभेद होनेके कारण उनकी उत्पत्ति हुई थी। परन्तु, जो समय दिया गया है वह ठीक नही बैठता इसी लिए रत्ननंदिनीने उसको युक्तिसंगत बनानेको पूर्ण खुलासा प्रगट किया था। यह कहना कि 'अर्धफालक' सम्प्रदाय कोई हुआ ही नहीं, युक्तिसंगत नहीं है क्योंकि विशेष संभाव्य यही है कि पूर्वके आचार्योंने प्रारम्भनें जबसे मतभेद खड़ा हुआ तबसे ही श्वेताम्बर संघ उत्पन्न हुआ लिखा और इतिहासकी ओर विशेष लक्ष्य न होते हुए उन्होंने समय वह दिया