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ર૭ 'भगवान महावीर। सूयगडांग (Suyagadang.IL.76)में भगवान पार्श्वनाथके शिष्योंको 'निगन्थ समण कुमारपुत'के नामसे विख्यात किया है। इसमें निगन्य शब्दसे साफ प्रगट है कि वे तिलनुष मात्र परिग्रह रहित मुनि होते थे। उन्होंने उस शरमपर विजय प्राप्त कर ली थी, निसके छुपानेके लिए उन्हें वस्त्र धारण करनेकी आवश्यक्ता पड़ती। 'निगन्य' शब्दके शाब्दिक भावसे यह प्रमाणित है कि वे दिगम्बर भेषमें रहते थे । जो श्वेताम्बर कथानक इस विषयमें है, वह दिगंबर श्वेताम्बर मेद होनेके पश्चातका है, इसलिए यथार्थ नहीं है। तिसपर स्वयं श्वेताम्बर ग्रन्थोंमें साधुके लिए नग्नावस्था आवश्यक बतलाई गई है। उनमें २२ परीपहोंके अन्तर्गत अचेलक या
पत्यकथा (P. T. S.) Vol. I, pt. II, p. p. 384 foll. में अनेक स्थानों पर 'न' (naked) शन्द आया है। अर्थात Naked akcetics "Dialogues of the Buddha" pt. III. P 14. में भी एक जैनमुनि कण्डार-माषुकको नाम लिखा है। ऐसे ही अन्य स्थलों पर भी लेख है। इसी प्रकार हिन्दू प्रन्योंमें मी जैनमुनियोको नम ही व्यक्त किया गया है। यथा महाभारतके मादिपर्वमें 'क्षपणक का उल्लेख है। और शब्द 'क्षपणक' के अर्थ मि० मोनियर विलियम्सकी संस्थत डिक्शनरी में ( पृष्ट १२६, सन् १८९९ ) यह लिखे है कि "क्षपणक एक धार्मिक सन्यासी है, खासकर एक जैनसापु, जो कोई पत्र नहीं पहिनता है।" पगहमिहिरसंहितामें लिखा है कि "शाक्य तथा मंगे जैनी परम दयालु और शान्त हइयवाले देवताको पूजा करते हैं।" (देखो मि० दत्तका "भारतवर्षकी प्राचीन सभ्यताका इतिहास" हि.
भनुमाइ पृष्ट १७१ ) असंहितामें भी अनमुनियोंको नाम बताया है •षा “मुनयः बाववसनाः।" इसके भतिरिक प्राचीनकालमें (दासे पूर्वी शतानियोंमें) मन प्रीक लोग आए तो उनें नग्न जनगुनि की