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निर्वाण प्राप्ति - कालनिर्णय ।
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आनन्द, भयरहित कंगाल जीवनमें रहना सिखाया है । प्रायः मनुष्य ऐसों हीके बीच में उत्पन्न हुए और ऐसोहीकें विचाररूपी अन्नसे पले हैं। इसलिए इन बन्धनोंको तोड़नेमें वे डरते हैं । - परन्तु, लौकिक नीति और लौकिक धर्म तोड़ने - इसका संहार करने और पदार्थों का सत्यखरूप प्रगटकर उससे लोगोंको भड़का हिम्मतवान बनानेके लिए ही 'जिन भगवानका उपदेश है । वह प्रत्येक पदार्थको प्रकाशमें लाता है। इससे अन्धकारमें रहनेवाले उसपर यथाशक्य प्रहार करते हैं। और इसीलिए वह उपदेश आर्योकी अपेक्षा अनार्योको भी होता है कि वे सत्यखरूपं समझें और भड़कें ।"
अस्तु, भगवान महावीरका दिव्योपदेश परम विशाल था, उसका कुछ दिग्दर्शन संसार में प्रसिद्ध अतुल जैन साहित्यसे अब भी प्राप्त है । उपर्युक्त व्याख्यान रूप जो साधारण दिग्दर्शन है: वह मात्र उसकी भूमिका कही जा सक्ती है ।
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निर्वाण पाति-कालनिर्णय |
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“ पर्णछस्सॅयवस्सं पणमासजुदं गमिय वीर गिव्वुझ्दो । सगराजो तो कक्की चदुणवतियम हियंसगमास ॥ उक्त गाथाद्वारा त्रैलोक्यसार ग्रंथमें जैनाचार्य श्रीमद् नेमिचन्द्रजी प्रगट करते हैं कि 'महावीर भगवान के निर्वाणके ६०९ वर्ष और पांच महीने पीछे शकराना हुआ और उसके ३९४ वर्ष पीछे करिक हुआ।' इससे यह प्रगट होता है कि शक संवतसे ६०५ वर्ष पहिले भगवान महावीर ने मोक्षलाभ किया था।
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