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भगवान महावीर। यिकके अङ्ग हैं। देशावश्यक व्रत अपने गमनागमन स्थानको नियत कर लेना है। श्रावक प्रत्येक सप्ताहमें एक दिन निर्जल उपवास करके प्रोषधोपवास व्रतका पालन करता है । वैय्यावृतका पालन करके श्रावक अन्य जीवोंकी सहायता करता है। इस सेवाव्रतकें चाररूप हैं: (१) भोजन (२), औषधि, (३) शास्त्र; (४) और अभय (प्राणदान)। परोपकार भावसे तृषित-मुखित जीवोंकी सहायता करना योग्य है । *
श्रावकके चारित्रकी ११ प्रतिमाएं हैं। श्रावक जितनी २ आत्मोन्नति करता जाता है, उतना ही उतना व्रतोंका पालन करना भी बढ़ता जाता है । प्रथम प्रतिमाके धारी दार्शनिक श्रावकको' जिन भगवान द्वारा प्रतिपादित यथार्थ धर्ममें पूर्ण श्रद्धा होती है। और वह मोक्षमार्गपर चलनेका अभिलापी होता है।. वह संसारमे अपनी गृहस्थीके साथ रहता हुआ नियमित सीमासे सांसारिक भोगोका उपभोग करता है और क्रमशः सीडी दर सीडी चढ़ते हुए संसारसे मोह कम करते हुए वही श्रावक.११वी
. भवानके बताए हुए इन व्रतोंका पालन यदि समुचित रीत्या ससारमें किया जाने लगे तो उनके सर्व दुःख ऋन्दननाद काफूर हो जाय । प्रत्येक देशके व्यक्ति तब एक सधे धर्मरत स्वाधीन
और समभावी नागरिक होम और सर्व प्राणियों के स्वानों की रक्षा समरूपमें कर सके । सनराष्ट्र एक दूसरेको कष्ट पहुचाने स्थानमें सहायता करने लगे और मानव समाजकी उन्नति हो उसो मुदिन सामने आ गये। भारतीयों और सासर जैनियों को अपने प्राचीन महापुरुष उनदेशका पालन करना चाहिए और उमे सर्व प्राट
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करना चाहिय ।