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भगवानका दिव्यापदश। २११
mamimom संसार परिभ्रमणमें पड़ी हुई संसारी आत्माओंके दुःख पाशोंको हटानेवाला है और उन्हें सच्चे मार्गमें लगानेवाला है। सम्यक्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र सच्चा मोक्षका मार्ग है। 'आत्मा आप ही अपनेको संसारमे अथवा आप ही अपनेको निर्वाणमें ले जाता है। इस लिए निश्चयसे आत्माका गुरु आत्मा है दूसरा कोई नहीं है। और यही आत्मा अपनी यथार्थ अवस्थामें शुद्धबुद्ध निर्विकल्प अव्यावाधसुख और शांतिसे पूर्ण है। उसमें सम्पूर्ण नगतका अनन्तज्ञान विद्यमान है।' सुतरां यह अपने अनुभवमें चारित्रद्वारा ले आया जा सका है इसलिए निजात्माके स्वभावमें ही रमण करना योग्य है। सर्व बाह्यविकल्पोंका इससे कुछ सम्बन्ध नहीं है। किन्तु संसारी भीरुआत्मा सहसा अपने कर्मजनित मोहको शरीरसे हटा नही सकी इसी लिए उसे चाहिए कि सर्वज्ञ कथित तत्त्वोंमें पूर्ण श्रद्धा रक्खे, उनका ज्ञान प्राप्त करे और आत्मोन्नतिके कारणभूत श्रावकके व्रतोंका पालन करे, जिससे उसकी
आत्मा अपने निजत्वको प्राप्त होनेमें अग्रसर होवे । ____ मनुष्य शरीरमे जो आत्मा है, वह कर्मोकी कालिमासे कलंकित है । जिस प्रकार खानसे निकले हुए स्वर्णमे उसके वर्णमय गुण प्रकट नहीं हो सके, उसी प्रकार यह संसारी आत्मा को अनादिकालसे अपनी अशुद्धावस्थामें है, अपने परमात्मगुणोंको प्रकट नहीं कर सकी। यह इस अशुद्धावस्थाके कारण संसारके मध्य देव, मनुष्य, नरक और तिर्यञ्च नामक चार गतियोमें भ्रमण र रही है-नाना दुःख सह रही है। क्रोध, मान, माया और लोमके वशीभूत हो अपने स्वाभादिक गुणोंके ऊपर उत्तरोत्तर मेल