________________
भगवान महावीर।। हैं कि महावीरने उस कालके अपनेसे पूर्वगामी २३ तीर्थंकरोंको देखा था। बौद्धधर्मकी इस व्याख्यासे साफ प्रगट है कि उनका २४.बुद्धोंसे मतलव २.४ जैन तीर्थकरोंसे है ।" (Ses' Prokace to Kalpasutra P. XIII.)
, अस्तु, अब हम महावीर भगवानके निर्वाण प्राप्तिके दिव्यावसरका वर्णन, करके भगवानके, दिव्योपदेश और उनके पश्चात् अनेक संघकी दशाका दिग्दर्शन पाठकोंको करायंगे ।
A
भगवानका मोक्षलामा | ‘त्वमसि सुरासुरमहितो ग्रन्थिकसत्त्वाशयप्रणामामहितः। , लोकत्रयपरमहितोऽनावरणज्योतिरुज्वलडामहितः ॥"
बृहस्वयंभूस्तोत्र। • हे वीर ! आप सुरासुरोसे वंदित, वा मिथ्यादृष्टियोंसे अवं. दित. तीन लोकके परमहितकारक, निरावरण ज्योतिः अर्थात् क्षायक 'ज्ञान (केवलज्ञान) उससे प्रकाशमान जो मोक्षस्थान है उसको प्राप्त ' होनेवाले हैं।
...जैन शास्त्रोमें तीर्थकर भगवानके जो पांच अति उत्कृष्ट दिव्यअवसर, कल्याणक कहे हैं उनमेंसे हम भगवान महावीरके गर्म, जन्म, तप और ज्ञान- कल्याणकोंका वर्णन कर चुके हैं। अवशेष मोक्षकल्याणक जो सर्वमें सर्वोत्कृष्ट है, उसका दिग्दर्शन * हम यहां करते हैं । इस ही अवसर पर तीर्थकर भगवानकी संसारी ', आत्मा अपनी संसारपरिभ्रमणकारक स्थितिका अन्त सदैवके लिए'