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भगवान महावीर ।
बौद्धग्रन्थोंसे मालूम होता है कि "यह एक म्लेच्छस्त्रीके
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गर्मसे उत्पन्न हुआ था । ' कश्यप उसका नाम था । इस जन्मसे
पहिले यह ९९ जन्म धारण करचुका था । वर्तमान जन्ममें
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उसने शतजन्म पूर्ण किए थे इस कारण इसको लोग 'पूरण- कश्यप ' कहने लगे थे। उसके खामीने उसे द्वारपालका काम सौंपा था; परन्तु उसे वह पसन्द न आया और यह नगरसे भागकर वनमें रहने लगा। एक बार कुछ चोरोंने आकर उसके कपडेलत्ते छीन
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लिये, पर उसने कपड़ोंकी परवा न की, यह नग्न ही रहने लगा ।
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उसके बाद यह अपनेको पुरण कश्यप बुद्धके नामसे प्रकट करने लगा और कहने लगा कि मैं सर्वज्ञ हूं। एक दिन जब वह नगर में गया, तो लोग उसे वस्त्र देने लगे, परन्तु उसने इन्कार कर दिया। और कहा - "वस्त्र लज्जानिवारण के लिए पहिने जाते हैं और लज्जा पापका फल है। मैं अर्हत हूं मैं समस्त पापोसे मुक्त हूं, अतएव मैं लज्जासे अतीत हूं । " लोगोंने कश्यपकी उक्तिको ठीक मानली और उन्होने उसकी यथाविधि पूजा की, उनमेंसे ५०० मनुष्य उसके शिष्य हो गए और सर्वत्र शिष्य यह घोषित हो गया कि वह बुद्ध है और उसके बहुतसे हैं । परन्तु बौद्ध कहते हैं कि वह 'अवीचि ' नामक नर्कका निवासी हुआ । सुत्तपिटक दीर्घनिकाय नामक भागके अर्न्तगल 'सामाओ फलसुत' में लिखा है कि पूरण कश्यप कहता था- 'असत्कर्म करनेसे कोई पाप नही होता और सत्कर्म करनेसे कोई पुन्य नहीं होता । किए हुए कर्मो का फल भविष्यत् कालमें मिलता है, इसका कोई प्रमाण नही है । "
(देखो जनहितैषी भाग १३ अंक ५-६ पृष्ठ २६८)