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मक्खारी गोशाल और पूरण काश्यप। १७३ मकवाली मोशाल और
दूर काश्यप। 'सिरिवीरणाहणतित्थे बहुस्सुदो पाससंधगणिसीसो । मकडिपुरणसाहू अण्णाणं भासए लोए॥"
-दर्शनसार । उक्तश्लोकसे व्यक्त है कि महावीर भगवानके तीर्थमें पार्श्वनाथ तीर्थकरके संघके किसी गणीका शिष्य मस्करी पुरण नामका साधु था। उसने लोकमें अज्ञान मिथ्यात्वका उपदेश दिया। यहां पर देवसेनाचार्यने आजीवक सम्प्रदायके मुख्य प्रवर्तक मक्खाली गोशाल
और अचेलक मतके संस्थापक पुरण कश्यपको एक ही व्यक्ति लिखा है । यद्यपि दोनोंने ही जैनधर्मसे विपरीत अज्ञान मतका उपदेश दिया था। परंतु देवसेनाचार्यके समयमें आजीवक लोग ही मिलते थे और दोनों सम्प्रदायोके साधु नग्न रहते थे, इन कारणोंवश संभवतः देवसेनाचार्यने इन दोनोको एक व्यक्ति लिख दिया है जैसे कि बौद्धोके अद्भुत्तर नामक ग्रन्थमे मक्खाली गोशालके छह अभिजाति नामक सिद्धांतको पूरण काश्यपका बतलानेमें भ्रम खाया गया है । और देवसेनाचार्यने उक्त गाथाके उपरांत गाथाओमें उनके सिद्धान्तोंका वर्णन किया है जो उनके ज्ञात सिद्धान्तोसे ठीक नहीं बैठते हैं जैसे जीवोका मरनेके पश्चात् आगमन न मानना
और संसारका एक शुद्धबुद्ध परमात्मा का मानना । सम्भव है कि देवसेनाचार्यकै समयके आजीवकोंका इस प्रकारके सिद्धान्तोमें विश्वास हो गया होगा, क्योंकि वह प्राचीन मानीवक सिद्धान्तोंके