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भगवान महावीर और म० चूछ। १७१ रके क्षीण और बलहीन होनेपर भी उन्होंने अपने प्रयत्नको नहीं छोड़ा। ऐसा दृढ़ श्रद्धान बुद्धदेवको तीर्थकरके साक्षात् दर्शनसे ही हुआ होगा। हम यह भी कह सकते हैं कि और कोई ऐसा नहीं था जिसका दृष्टांत बुद्धदेवके दिलपर ऐसा प्रभाव डालता, क्योंकि जैनधर्मके अतिरिक्त और किसीने भी पूर्ण ज्ञानी सर्वज्ञ होनेका दावा नहीं किया है।"
(देखो मि० चम्पतराय जैनका “गौड खंडन" पत्र ५-७) इस प्रकार हमारे उपर्युक वर्णनसे प्रगट है कि म० बुद्धके जीवन पर भगवान महावीरके जीवनका विशेष प्रभाव पड़ा था, जिसके कारण उन्हें यथार्थ ज्ञान प्राप्त करनेका हृढ़ विश्वास होगया था। यद्यपि वह उसमें पूर्ण सफल प्रयास नहीं हुए और वह अपने 'मध्य-मार्ग' का प्रचारकर लोगोंको दुःखसे बचनेके लिए शून्यतामें गर्त हो जानेका उपदेश देते रहे। और असी वर्षकी अवस्थामें सूभरका मांस खानेके पश्चात् मृत्युको प्राप्त हुए। .
___ अस्तु, बुद्धदेवके उपदेशका प्रभाव बहुत लोगोके हृदयोंपर इस कारणसे पड़ा कि उसमें कठिन तपस्या नहीं करनी पड़ती थी, और उसने हठयोगकी कठिनाइयोंको भी, जो वास्तवमें एक व्यर्थ मार्ग शारीरिक शोंका है और जिसका तपस्याके यथार्थ खरूपोंसे जैसे जैन सिद्धांतमें दिए हुए हैं, प्रथक् समझना आवश्यक है, हलका कर दिया था, परन्तु बुद्धसिद्धान्तके विषयमें एवं उसके आवागमनके मतके संबंधमें जिसमें कर्म करनेवालेके स्थानपर एक अन्यपुरुषको कम्मौके फलरूपदुःखसुखको भोगनापड़ता है और उनकी मानी हुई आत्माओंकी अनित्यताकी पावत हम चाहे