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भगवान महावीर और म० बुद्ध । १६७
बुद्धके जीवनकालमें ही उसका यह आचारनियम इसी प्रकार शिथिल था, यह खयं बौद्ध ग्रन्थोंसे प्रमाणित है क्योंकि बौद्धोंके महावग्ग ग्रन्थ मे लिच्छवियोंके सेनापति सीहका उल्लेख है कि वह निगन्थ नातपुत्तका शिष्य था, जो मो० बुहलर और जेकोबीके अनुसार प्रमाणित रीत्या जैनियोंके भगवान महावीरखामी हैं । महावग्ग में लिखा है कि सेनापति सीहने बुद्धकी बड़ी प्रसंशा सुनी थी और वह अन्तमें बौद्ध भी होगया था। बौद्ध होने पश्चात् सीहने बुद्ध और बौद्ध भिक्षुओंको भोजनार्थ आमंत्रित किया था और उनके भक्षणके लिए बाजारसे वह मांस लाया था। इसके अगाड़ी महावग्ग में लिखा है कि " इस समय एक बड़ी संख्या में निर्ग्रन्थ लोग वैशाली में, सड़क सड़क और चौराहे चौराहेपर यह शोर मचाते दौड़ रहे थे कि आज सेनापति सीहने एक बैलका बघ किया है, और उसका आहार समण गौतमके लिए बनाया है। समण गौतम जानबूझ कर कि यह बैल मेरे आहार निमित्त मारा गया है पशुका मांस खाता है; इसलिए वही उस पशुके मारनेके लिए बधक हैं ।" (See Vensya Texts, Saored Books of the East, Vol: XVII, P. 116. & the Kshatriya Clans in Buddhist India P. 85)
इसके अतिरिक्त बौद्धके अंतिम जीवनमें जो उसके संघमें फूट पड़ी थी उसका मुख्य कारण भी इसी बातकी पुष्टि करता है जैसे कि:
"देवदत्त (बौद्धके शिष्य) का दूसरा कार्य संघको छिन्नभिन्न करना था। उसने तपश्चरणके कुछ आधिक्य होनेपर जोर दिया,