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भयुवान महावीर । बातों में विरोध ओता है, परन्तु एक तरहसे-दोनोंकी संगति के जाती है. क्योंकि मि० के० जे० सॉन्डरसकी Gotama Buddha, नामक पुस्तक (पत्र ४०)के निन्न वाक्य. प्रगट करते हैं कि मौद्गलायन बौद्धसंघका नेता था और उसका गुरु संजय था।
"...... Gotan himself promoted Şaripatta and . Moggallada to Positions of Leadership... They, were wandering ascetics, disciples of Sanjaya."
' इसके अतिरिक्त महावग्ग आदि बौद्धग्रन्थोसे भी इसी • बातकी पुष्टि होती है कि मौदलायन बौद्धसंघका नेता और
प्रचारक था । इस दृष्टिसे मौद्गलायनको बौद्धदर्शनका प्रवर्तक कहना . अपयुक्त नहीं ठहरता है। मौद्गलायन पहिले जैन मुनि था यह भी इस प्रकार प्रकट है । अशककवि छत महावीरपुराणमें एक चारणऋद्धिधारी मुनि संजयका उल्लेख है और मौद्गलायनके गुरुका नाम भी यहां संजय बतलाया गया है। अस्तु, यह दोनो संजय एक ही व्यक्ति थे ऐसा प्रतीत होता है अतएव अब उक्त दोनों आचायोंका सम्मिलित अभिप्राय यह निकला कि पार्श्वनाथके धर्मतीर्थमे पिहिताश्रव नामक जैन साधुके शिप्य बुद्धदेव हुए और बुद्धदेवका शिप्य मौद्रिलायन हुआ, जो खयं भी पहिले जैनथा। इस प्रकार हम बौद्धमतकी उत्पत्ति जैनधर्मसे देखते है जैसे कि मि कोलबुक आदि प्राच्यविद्या महार्णवोने भी प्रकट की है। थस्तु, जैन धमके विपरीत मतके स्थापन करनेवाले म बुद्धके विषयमें विचार । करनेसे हमें ज्ञात होता है कि शास्य प्रजातंत्र राजकुमार थे। स्वतंत्र स्वातीन विचार उनके हृदय में कूटर कर भरे हुए थे।