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________________ भगवान महावीर। चेलनाको बौद्धधर्म स्वीकार कराने के प्रयत्नमे लगे थे । उन्होंने अपनेको सर्वज्ञ बतलाया था। चेलनाने उनकी परीक्षा ली थी जिसमे वह अनुत्तीर्ण हुए थे। और इस परीक्षाके सत्यसे उनकी अवज्ञा भी हुई थी, जिसके कारण जैन गुरुओके प्रति श्रेणिक महाराजके हृदयमें द्वेष धधकने लगा था। महाराज श्रेणिक एक दिवस आखेटको गए थे कि उन्होंने मार्गमें एक दिगम्बर मुनिको ध्यानारूढ़ देखा । देखते ही अपने गुरुकी अवज्ञाका बदला चुकानेके लिए महाराज श्रेणिकने उनके गलेमें एक मरा हुआ साप डाल दिया और वापिस राजगृहको लौटे। उधर दिगम्बर मुनिने अपनेपर उपसर्ग जाया जान अपनी ध्यानमुद्रा और भी चढ़ादी और नित्य अनित्यादि बारह भावनाओंका स्मरण करने लगे। बौद्ध गुरुओको यह सब हाल राजा श्रेणिकने कह सुनाया जिससे वे अतिप्रसन्न हुए परन्तु यह सुनकर रानी चेलनाचे बहुत दु.ख हुआ। और उसके नेत्रोंसे अखिल अनुधारा वह निकली । राजा श्रेणिकसे अपने प्रियाका रोदन नहीं देखा गया। वह उसे सांत्वना देने लगे और कहने लगे कि " प्रिये ! तू इस वातके लिये जरा भी शोक न कर, वह मुनि गलेसे सपे फेंक कत्रका वहाँसे चल वसा होगा ।" महाराजळे ये वचन सुन रानीने कहा कि नाथ ! आपका यह कपन भ्रममात्र है। मेरा विश्वास है, यदि वे मेरे सच्चे गुरु हैं तो कदापि उन्होंने अपने गलेले सर्प न निशला , होगा। इस पर महाराज श्रेणिज्ने रानी समेत उसी स्थानको प्रत्यांन किया जहां पर वह मुनिशे छोड़ गया था। यहां पहुँचन्द
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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