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महिलारत्न चन्दना।
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दानके प्रभावसे चन्दनाका यश पुरभरमें फैल गया था। वहांकी रानीने इन्हें आमंत्रित किया था। देखनेपर पहिचाना कि यह तो मेरी लघु भगिनी है, जो बाल्यावस्थामें लुप्त होगई थी । बहिनोंकी प्रसन्नताका ठिकाना न रहा। चन्दनाकी इस वहिनका नाम गृगावती था । चन्दना मृगावतीके पास रहने लगी थी, पर भगवान वीरका पावन उपदेश सुनकर उसे संसारसे पूर्ण वैराग्य होगया, जिसके कि अङ्कर उसके हृदयमें पहिलेसे विद्यमान थे, और वह आर्यिका होगई। निर्मल चारित्रका अनुसरणकर दुर्घर तप तपने लगी, आत्मज्ञानकी ज्योतिसे अपने नेत्रोंको भूषित करने लगी और पवित्र साधु धर्मका पालन करती करती आप भगवानके आर्यिका संघके नायिका पदपर विभूषित हुई थी, यह हम पहिले देख आए हैं। अन्तमें आप वगंधामको सिधारी थी।
आपके चारित्रसे हमें संयम, नियम, संनोषव्रत आदिमें परम दृढ़ता रखनेका अपूर्व पाठ मिलता है व भारतीय रमणियोके अपूर्व गुणोंका दिग्दर्शन होता है।