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सुधर्माचार्य एवं अन्य शिष्य। ११९ इन्द्रभूतिके उपरान्त आप ही मुख्य गणधर हुए थे। आपने धर्नका प्रचार भी खूब किया था। प्रख्यात जम्बूस्वामी अन्तिम केवली. आप ही के शिष्य थे । जम्बूस्वामीने मथुराके निकट चौरासीसे; मुक्ति लाम किया था । आपने १२ वर्ष उपरान्ततक धर्मप्रचार किया था । अबतक महावीर स्वामीको मोक्षगए ६२ वर्ष हो चुके थे। इसके १०० वर्ष वाद भद्रबाहु श्रुतवली हुए थे। इस प्रकार इस मुनिसंघ द्वारा १६२ वर्ष पर्यन्त धर्मका प्रचार खूब प्रभावनाके साथ रहा।
इसके पश्चात् १८३ वर्ष बाद तक दश पुओंके ज्ञानके धारी मुनि धर्मप्रचार करते रहे, जिनके नाम इस प्रकार है-(१) विसाषाचार्य (२) प्रोष्टलाचार्य (३) क्षत्रयाचार्य (४) जयाचार्य (६) नागसेन (६) सिद्धार्थ (७) ध्रुतसेन (८) विनय (९) बुधल (१०) गंगसेन (११) सुधर्म, और हम देखते हैं कि इस जमानेके चन्द्रगुप्त मौर्यः भिक्षुरान खारवेल आदि प्रसिद्ध सम्राट् जैनधर्मानुयायी थे। इसके पश्चात् २२० वर्ष तक ११ अंगके धारी मुनि विहारकर धर्मका उद्योत करते रहे। वे यह थे अर्थात् (१) नक्षत्राचार्य (२) जयपाल (३) पाण्डु (४) ध्रुवसेन (५) कंसाचार्य । पश्चात् केवल एक अंगके पाठी सुभद्र, यशोभद्र, यशोवाहु और लोहाचार्य रहे। अन्तमें इनका भी अभाव होगया। फिर लोहाचार्यके पश्चात क्तियधर, श्रीदत्त, शिवदत्त और अईदत्त ये चार आरातीय मुनि अंग पूर्वज्ञानके कुछ भागके ज्ञाता हुए और फिर पूर्वदेशके पुण्बवनपुरमें श्री अईहलि मुनि अवतीर्ण हुए, जो अंगपूर्व देशके भी एक देश (भाग) के जाननेवाले थे। इनके पश्चात् माघनन्दि आदि मुनि