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भंगकन महावीर।
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विविध उपसर्ग वर्णन। निरापरध निवर महामुनि तिनको दुष्टलोग मिल मारें कोई खैच खम्भसे बांये कोई पावकमै परजारै । तहां कोप नहीं करें कदाचितू पूर्व कर्म विचारें। समरथ होय सह अधबन्धनते गुरु सदा सहाय
--- वाइस परिषह मुघरदासजी कृत। हम पहिले देख आए हैं कि महावीरचरित्रमें वर्णित है कि भगवान महावीरपर, रुद्र द्वारा उपसर्ग हुआ था । और भगवान्ने उसे समताभावसे सहन किया था । दिगंवर शास्त्रोंमे इसके
अतिरिक्त अन्य कोई उल्लेख नहीं है । श्वेताम्बर ग्रन्थोमें हमें कई ! एक कथानक मिलते हैं। उनमें से कुछका उल्लेख हम यहां करते हैं। इन कथानकोको प्रकट करनेमें, इनके रचयिता आचार्योंको भाव भगवानके चारित्रकी दृढ़ता और निर्मलता दिखानेका प्रतीत होता है । अस्तु ।
एक समय भगवान ध्यानमै मग्न थे । देवाङ्गनाएँ इनके ध्यानकी परीक्षा करने आई और वे गीतनृत्य करने लगी। अपने हावभावोंसे इन्हें रोमांचित करना चाहती थीं-इनके उग्रतपको मंग करना चाहती थीं, परन्नु भगवान महावीर, संसार-विजयी बीर-वासना विनयी वीर आत्मव्यानसे हटकर इनकी ओर क्षणमात्रके लिए भी नहीं देखते ये। विचारी देवाहना हताश