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भगवान महावीर ।
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इतिहासकी ओर इतना गंभीर लक्ष्य पहिलेके विद्वानोंका नहीं था । इस प्रकार कूल्नृप और कूलपुरकी ऐतिहासिकता प्रगट होती हैं, किन्तु यह निश्वय रूपमें अमी स्वीकार नहीं की जासक्ती अस्तु! भगवान महावीर इस कूल्यपुरसे प्रस्थान करके दशपुर नामक नगरको गए थे ! वहां भी कूलनृपने जाकर भगवानको दुख और चांवलका आहार विनयपूर्वक दिया था । इसके उपरान्त भगवान महावीर वनको वापस चले गए थे। और फिर कितनेक स्थानोंका 'भ्रमण करके बारह प्रकारके तपोंका अभ्यास करने लगे थे। इस तपश्चरणके प्रभावसे आपको आठ प्रकारकी ऋद्धियों और कई प्रकारकी सिद्धियोंकी प्राप्ति होगई थी। इसके पश्चात् आपने पंच महाव्रतों, पांच समितियों, तीन गुप्तियों और चौरासी हजार उत्तर गुणोंका पालन किया था । इस तपश्चरणके उपरान्त भी आपने कितनेक स्थानोमे गमन किया था ।
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इसी परिभ्रमणके मध्य एक समय आप उज्जयनी नगरी में पहुंचे थे। और वहॉके अतिमुक्तक नामक स्मशान भूमिमें रात्रिके समय प्रतिमायोग धारणकर खड़े हुए थे उस समय भव नामके रुद्रने अपनी अनेक प्रकारकी विद्याओके विमवसे बहुत कुछ उपसर्ग किए, पर वह उन विभव-संसार रहितको जीत न सका । तब उन जिननाथको उसने नमस्कार करके भगवानका 'अतिवीर ' - नाम रक्खा था।
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उज्जैन से महावीरस्वामी कौशाम्बीको गए थे। यहांपर चन्दना
नामक स्त्रीने आपको आहार दिया था। यही चन्दना पश्चातमें
आपके आर्यिका संवकी नायका हुई थी, इनके विषय में हम अगाड़ी
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