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तपधरण और केवलज्ञानोत्पत्ति। ९७ मि० ला की पहिले उल्लिखित पुस्तकमें एक कोल्यि क्षत्रिय नातिका उल्लेख है। इस जातिके विषयमें वे लिखते हैं (प्ट० २०३) कि "रामगामके कोल्यि, यह नाम प्रकट करता है कि यह जाति देवदहके कोल्यि क्षत्रियोंमेसे ही निकली थी । कनिगघम साहवके अनुसार रामगाम (रामग्राम) और देवकलि एक ही ग्राम हैं।.... दिषनिकायके महापारिनिव्वान सुत्तन्तमें रामगॉवके निवासियोंको
नाग नातिसे सम्बन्धित बतलाया है।" ___ इसमें कोल्यि शब्दसे कूल शब्दकी बहुत सादृश्यता है और यह विचारनेकी बात है कि कूलपुरका अधिपति कूल नृप जैनशास्त्रोंमें लिखा है। नगर और राजाका नाम एक होना यह निश्चय दिलानेको एक प्रबल कारण प्रतीत होता है कि यह कूल नाम एक जातिका था; और उस कूल जातिके अधिपति जैन शास्त्रोंमें कूलनृप कहे गए हैं। और उस कूल जातिकी राजधानी होनेके कारण उस कूल जातिके नृपतिका नगर कूल्यपुर कहा गया है। मि० ला एक क्षत्रिय कोल्यि नातिका उल्लेख करते ही हैं। अस्तु, बहुत संभव है कि इसी जातिके अधिपति कूलनृपके नामसे विख्यात हैं। और उस जातिकी राजधानी रामगॉम ही कूल्यपुर होगी रामगामका कूलपुर नाम संभव है इस प्रकार पड़ गया होगा कि रामगाम और देवकलि एक ही ग्राम थे । देवकलिमेंसे अन्तिम पद कलिकी कुछ सादृश्यता कूलसे बैठती है। अस्तु, इस सादृश्य भावको ध्यानमें रखते हुए कूल जातिकी अपेक्षा ही इस ग्रानका नाम कूल्यपुर कवियों द्वारा रख लिया गया होगा। कालान्तरमें उस नगरका यथार्थ नाम नजरोंसे ओझल होगया होगा क्योंकि