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भगवान महावीर । मुनिपदको धारण किया था, जैसे हिन्दी उत्तरपुराणमें कहा है:
"रत्नशिला परे तिष्टे सही, उत्तर आस्वासन मुख लही। मार्गशीर्ष सुदि दशमी जान, 'हस्त उत्तरामय खसिमान ॥ अरु अपराह्न समय जिनराय, संयम सन्मुख भए समाय ॥"
'भगवानने शीघ्र ही सात लब्धियोंको प्राप्त कर लिया। और मनः पर्यय ज्ञानको पाकर वे तमरहित भगवान रात्रिक समय नहीं प्राप्त किया है एक कलाको जिसने ऐसे चन्द्रमाकी तरह विल्कुल शीमने लगे।
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* जैनशानोंमें ज्ञान पांच प्रकारका बतलाया है यथा:'" मतिश्रुतापनिमनःय्ययकेवलानि ज्ञानम् " (तत्वाय स्त्र -१) ___अर्थात् (१) मति (२) श्रृंत (३) अधि ।) मनापर्यय (५) केवलज्ञान । मदिनान संसारके दृश्य पहायोंका ज्ञान है जो इन्द्रियों और मनद्वारा जाना जाता है। मतिज्ञान के साथ २ बोके स्वाय और अध्ययनसे प्राप्त सनन्त पदार्थो शानको शुनजान कहते है। उन सत्र बातोंका ज्ञान जो वा रही हो बिना वहां जाए ही २ जान लेनेको भरपि कहते है। दुसरोके मनोभावको जान लेना मनापर्यय है और बगडके भा भविपत वर्तमानके समस्त पदार्थों को युगान बान लेना पटशान है।