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वह मंत्र मुग्ध सुनता कल-कल
निष्किय; शोभा-प्रिय, कूलोपल ज्यों रहता।" दुःख के बाद सुख, निराशा के बाद आशा का आनन्ददायी संचार स्वाभाविक है। जैसे रात के बाद दिन आता है, असफलता से सफलता का प्रस्फुटन होता है। उसी प्रकार मध्यकाल की विषम परिस्थितियों के कुहासे को चीरकर तुलसीदास के रूप में नवीन सांस्कृतिक सूर्य, अनुकूलता का प्रभात लेकर प्रादुर्भूत हुआ। दिगन्त-व्यापी जड़ता में यही चेतना भरेगा। कण-कण को यही अपनी भास्वर दीप्ति से आलोकित करेगा। यही सम्पूर्ण देश की आशाओं का केन्द्र बिन्दु है, इसी से सबके स्वप्न साकार होंगे। अतः इसी सूर्योदय के साथ कविवर निराला देशवासियों को जगाते हैं और इस महिमा-मण्डित ज्योतिष्मान विराट् नक्षत्र से प्रेरणा लेने की बात करते हैं। यहाँ उनका भव्य आवेग देखते ही बनता है:
"जागो, जागो आया प्रभात् बीती यह बीती अन्ध रात!, झरता भर ज्योतिर्मय प्रपात पूर्वाचल, बॉधों बाँधों किरणें चेतन। तेजस्वी है तमजिज्जीवन,
आती भारत को ज्योतिर्धन महिमाबल।।2 तुलसी के रूप में यहाँ उज्जवल उदात्त-संस्कृति का पुनरूदय हो रहा है, कवि भावावेग से किन्तु उदात्तता को समेटे हुए अपने भारत वासियों का आह्वान कर रहा है कि हे भारतवासियों जागों प्रभात हो गया है। अन्धकार समाप्त हो गया है, देखो! युदचायक से ज्ञान की किरणें का ज्योतित झरना झर
1. तुलसीदास : निराला रचनावली (1) : पृष्ठ – 282, 283 2. 'तुलसीदास' : निराला-रचनावली भाग (1) : पृष्ठ - 305
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