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सौन्दर्य का उदात्त-चित्रण 'निराला' जैसा पूर्ण व्यक्तित्व वाला कवि ही कर सकता है। 'शेफालिका' अपने पूर्ण-यौवन पर है, शेफालिका रूपी पुष्प के पूर्णयौवन को कवि ने एक सद्यः यौवन युवती के रूप में देखा है। किसी को उनकी यह कविता यौवन का मॉसल चित्रण लग सकती है। लेकिन किसी महान अवधारणा वाले व्यक्ति के लिए एक दिव्य भव्य चित्र का उदाहरण हो सकती है।
वैयक्तिक दुःखानुभूति का औदात्यः
कवि निराला अपनी दुःखानुभूति को, जो कि उनकी निजी थी, एक ऐसी उदात्त-स्थिति पर पहुंचा दिया जहाँ वे सारी भौगोलिक और दैहिक सीमाएँ पार कर सार्वजनीन और सार्वकालिक हो गए :
"पुष्प-मंजरी के उर की प्रिय, गन्ध-मन्द गति ले आओ। नव जीवन का अमृत-मन्त्र-स्वर भर जाओ फिर भर जाओ। यदि आलस से विपथ नयन हों निद्राकषर्ण से अति दीन, मेरे वातायन के पथ से
प्रखर सुनाना अपनी वीन। xxx
वीणा की नव चिरपरिचित तब वाणी सुनकर उतूं तुरन्त। समझू जीवन के पतझड़ में