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________________ सन्ध्या का आगमन होता है तो स्तब्धता का एक वातावरण सा बन जाता है। स्तब्धता व्यापारों की सूक्ष्म अभिव्यक्ति निराला जी के औदात्य में ही संभव है, इसमें ध्वनि-चित्र नहीं है, एक शान्ति का चित्र दिया गया है। चित्रों का ऐसा सूक्ष्म एवं सर्वांगपूर्ण चित्रण कुशल-चितेरा और निपुण कलाकार ही कर सकता है। सन्ध्या का इतना सजीव मानवीकरण का चित्र कवि की उदात्त-भावना को ही प्रस्तुत करता है। जैसा कि कविता का शीर्षक ही है सन्ध्या को एक सुन्दरी के रूप में कवि उपस्थित करता है जो दिन के अवसान के बाद आसमान से सजधजकर ऐसी उतर रही है जैसी कोई प्रौढ़ा नायिका नायक से मिलने के लिए सजधजकर आ रही हो। यहाँ पर कवि ने सन्ध्या-सुन्दरी के हास की कल्पना उसके उज्जवल कोमल एवं वेदाग चरित्र से की है ऐसा कल्पना महान अवधारणाओं की क्षमता वाला कवि ही कर सकता है। सौन्दर्य के मॉसल चित्रण में कवि का औदात्य : रीति कालीन कवियों में स्थूलता, ऐन्द्रियता, स्थिरता आयी उसके उत्तर में छायावादी कवियों द्वारा श्रृंगारिकता का एक सफल प्रयोग किया गया है: "बन्द कंचुकी के सब खोल दिए प्यार से यौवन-उभार ने, पल्लव-पर्यनत पर सोती शेफालिके र मूक आह्वान-भरे लालसी कपोलों के RAKHEL व्याकुल विकास पर झरते हैं शिशिर से चुम्बन गगन के।" cr 1. मतवाला साहित्य कलकत्ता : परिमल : निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ – 144
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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