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________________ की भाँति ही सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन के दैन्य- दुरित - निवारण हेतु उनके अन्तस् का करूणा सागर विक्षुब्ध हो उठता था । 'निराला के जीवन' का बहुत कुछ भाग बंगाल में बीता था, जो 'स्वामी विवेकानन्द' के प्रभाव क्षेत्र में आता था। रामकृष्ण मिशन के दार्शनिक पत्र 'समन्वय' के सम्पादक भी कुछ दिनों तक वे (निराला) रहे । स्वामी विवेकानन्द की कुछ रचनाओं का उन्होंने अनुवाद भी किया था, कहने का तात्पर्य यह है कि निराला का जीवन-दर्शन रामकृष्ण मिशन और 'स्वामी विवेकानन्द' से अवश्य प्रभावित रहा होगा । "भूलकर जब राह, जब जब राह भटका मैं तुम्हीं झलके हे महाकवि, सघन तम की आँख बन मेरे लिए । । " कवियों के कवि 'शमशेर' का महाप्राण निराला के संबंध में यह कथन और केदारनाथ अग्रवाल के कि "तुम हमारे मूर्तिकार, हम तुम्हारी मूर्ति हैं । ।" से निराला के कवि व्यक्तित्व का या उनकी महान अवधारणाओं का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। यह स्वीकारोक्तियाँ केवल दो विशिष्ट कवियों की ही नहीं हैं बल्कि पूरे हिन्दी साहित्य की है। कहने का तात्पर्य यह है कि सर्वग्राह्य वही हो सकता है जो महान धारणाओं की अवधारणा करे, और एक बहुत बड़े जनमानस को प्रभावित करे, कवि की महान अवधारणाओं के संबंध में उपरोक्त पंक्तियॉ दृष्टव्य हैं। सामाजिक यथार्थ विषयक औदात्यः महाकवि के पात्र पूरे परिवेश और उसकी सामाजिकता को उजागर करते हैं। कथा साहित्य हो उपन्यास हो, कहानी हो, रेखाचित्र हो, या कविता । निराला 47
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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