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ओर किसी भी प्रकार की लयात्मक उद्भावना से युक्त गद्य-कल्प, शब्द-प्रधान कविताएँ हैं। लेकिन उल्लेखनीय बात यह है कि उत्तरोत्तर अभिव्यक्ति की ऋजुता और उस ऋजाता में कुशलता से छिपी गहनता की ओर कवि का झुकाव होता जाता है
"उपन्यास लिखा है, जरा देख दीजिए। अगर कहीं छप जाए तो प्रभाव पड़ जाय तो प्रभाव पड़ जाय उल्लू के पट्ठों पर मनमाना रूपया फिर ले लूँ इन लोगों से; नए किसी बंगले में एक प्रेस खोल दूँ आप भी वहाँ चलें
चैन की बंसी बजे। अपने पूर्ववर्ती काव्य के संस्कारनिष्ठ बिम्ब विन्यास की प्रवृत्ति घटती चलती है और बहुत परिचित साधारण वस्तुओं से कवि प्रतीक-बिम्ब का काम लेता है। 'मैं अकेला' का कुछ-कुछ तटस्थ सा अवसाद 'हट रहा मेला' और 'कोई नहीं भेला' के प्रतीकों में मुखरित हुआ है:
"पके आधे बाल मेरे, हुए निष्प्रभ गाल मेरे, 'चाल मेरी मन्द होती आ रही हट रहा मेला। जानता हूँ नदी झरने,
1. मास्को डायलाग्सः अणिमा संग्रहः निराला रचनावली भाग(2) पृष्ठ-42
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