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________________ बाल्य की केलियों का प्राङ्गण कर पार, कुंज-तारूण्य सुघर आयी, लावण्य–भार थर-थर कॉपा कोमलता पर सस्वर ज्यों मालकौश नव-वीणा पर ।।" 'अनामिका' में जहाँ एक ओर 'मरण-दृश्य' जैसी सूक्ष्म गंभीर गीति रचना है, वहीं 'खुला आसमान', 'ठूठ' व 'किसान की नई बहू की ऑखें, जैसी यर्थाथ– परक कविताएँ हैं, जिसमें महत्वहीन समझे जाने वाले जन-सामान्य में प्रचलित शब्दों का रचनात्मक उपयोग किया गया है। "ह्ठ' कविता अपने रचना-विधान में बेजोड है, कवि ने 'ट्ठ' जैसे मामूली वस्तु को प्रतीक के रूप में ग्रहण किया है और उसके माध्यम से जीवन की उदासी और श्रीहीनता की गहरी व्यंजनाएँ विकसित हुई हैं: "तूंठ यह है आज! गयी इसकी कला, गया है सकल साज! xxx केवल वृद्ध विहग एक बैठता कुछ कर याद"। यहाँ कवि 'दूंठ' रूपी प्रतीक के माध्यम से यौवन के ढ़ल जाने की शोभाहीनता और अनुपयोगिता के बेवस एहसास की मार्मिक स्थिति का संश्लिष्ट अंकन 'ठूठ' के बिम्ब में हुआ है। निराला की प्रबन्धात्मक दृष्टि:- '1938' में निराला के 'तुलसीदास' काव्य का प्रकाशन हुआ। यहाँ कवि का झुकाव मुक्तक की तरफ बढ़ रहा है। जिस समय तुलसी का आविर्भाव हुआ, मुगल साम्राज्य का चरमोत्कर्ष था। यथार्थवादी दृष्टिकोण 1. लूंठ: अनामिकाः निराला रचनावली भाग (1) पृष्ट-352 2. दूंठ: अनामिकाः निराला रचनावली भाग(1) पृष्ठ-352
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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