SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संवेदना से परिपूर्ण है, जिसमें स्मृति चित्रों के माध्यम से भव्य अतीत को पूरी सुकुमारता के साथ भाषा मे उतारा गया है। "यमुने तेरी इन लहरों में किन अधरों की आकुलतान पथिक प्रिया सी जाग रही है उस अतीत के नीरव गान ।। छायावादी काव्य के साथ कविता का शाब्दिक अर्थ लेने की परम्परा अनुपयोगी सिद्ध होती है, इस रूप में कविता काव्य भाषा की उत्तरोत्तर, घुलनशीलता, सूक्ष्मता और अनिर्दिष्ट प्रकृति से अधिक आत्मीयता और आत्म-विश्वास के साथ जुड़ती है। कविता का शाब्दिक अर्थ न हो सकने की स्थिति में पाठक और कभी-कभी समीक्षक खीझता है। पर श्रेष्ठ कविता की सघन अर्थ-प्रकिया शाब्दिक अर्थ न हो सकने की सीधी और सरलीकृत पद्धति से परे होती है। इस दृष्टि से 'परिमल' की 'मौन' कविता पहले आती है: " बैठ लें कुछ देर आओ एक पथ के पथिक प्रिय अन्त और अनन्त के सरल अति स्वछन्द जीवन प्राप्त के लघुपात से उत्थान पतनाधात से रह जाए चुप निर्द्धनद।।" 1. यमुना के प्रतिः निराला रचनावली भाग(1) पृष्ठ 115 (सम्पादक नंद किशोर नवल) 2. मौनः परिमलः निराला ग्रन्थावली भाग(1)-पृष्ठ 170 (सम्पादक- नन्द किशोर नवल)
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy