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(ख) बल्कि नील नदी, डेन्यूब और इन सबसे अधिक महासागर से प्रभावित होते
हैं।
(ii) असाधारण शक्ति और वेग :- न हम उसे एबना के ज्वालामुखियों की अपेक्षा अधिक विस्मयकारी मानते हैं, जो अपने विस्फोट में अतल-गर्भ से बड़े-बड़े पत्थर और बृहद्कार शिलाखण्ड बाहर फेंकते रहते हैं और कभी-कभी जिनके गर्भ से विशुद्ध और आतभौंम ज्वाला का नद प्रवाह उमड़ता चला जाता
है।
(iii) अलौकिक ऐश्वर्यः- सभी गुण जहाँ यह सिद्ध करते हैं कि उनको धारण करने वाले मनुष्य हैं वहाँ औदात्य लेखक को ईश्वर के (ऐश्वर्य के) समीप ले आता है। (iv) उत्कट एवं स्थायी प्रभाव क्षमताः(क) बज्रपात का बिना पलक झपकाए सामना करना तो आसान है, किन्तु एक के बाद एक तीव्रगति से होने वाले उस भाव विस्फोट को अविकल न होना कठिन ही नहीं लगभग असम्भव हो जाए और जिसकी स्मृति इतनी प्रबल और गहरी हो कि मिटाए न मिटें।" बहिरंग तत्वः-लौंजाइनस के निबन्ध का मुख्य प्रतिपाद्य उदात्त-शैली ही है-अर्थात् उनका ध्यान मूलतः उन तत्वों पर ही केन्द्रित रहा है जिनके द्वारा काव्य की शैली उदात्त बनती है। स्पष्टतः ये उदात्त के बहिरंग-तत्व हैं, स्वयं लेखक के शब्दों में ये “कला की उपज" हैं।' 1) अलंकारों की समुचित योजनाः- जिसके अन्तर्गत् भाव और अभिव्यक्ति दोनों ही से संबंधित अलंकार आ जाते है। (ii) उत्कृष्ट भाषा :- जिसके अन्तर्गत् शब्द चयन, रूपकादि का प्रयोग और भाषा की सज्जा समृद्धि आदि गुण आ जाते है।
1. काव्य में उदात्त तत्व - डॉ0 नरेन्द्र-पृष्ठ-53
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