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________________ यही कारण है कि सम्पूर्ण विश्व भी मानव मस्तिष्क के विचार और चिन्तन के लिए पर्याप्त नहीं लगता और प्रायः हमारी कल्पना दिगन्त को पार कर जाती है। "कारण यही है कि हम स्वभाव से ही छोटी-छोटी धाराओं की प्रंशसा नहीं करते, चाहे वे कितनी ही उपयोगी और निर्मल क्यों न हो, बल्कि नील नदी, डेन्यूब, अथवा राइन और इन सबसे अधिक महासागर से प्रभावित होते हैं। इन सब विषयों में हम कह सकते हैं कि जो कुछ उपयोगी तथा आवश्यक है उसे मनुष्य साधारण मानता है, अपने सम्भ्रम का भाव तो वह उन पदार्थों के लिए ही सुरक्षित रखता है जो विस्मय-विमूढ कर देने वाले हैं? "और सभी गुण जहाँ यह सिद्ध करते हैं कि उसको धारण करने वाले मुनष्य हैं वहाँ औदात्य लेखक को ईश्वर के समीप ले जाता है, जहाँ दोष-मुक्त होने पर आलोचनाओं से छुटकारा मिलता है, वहाँ गरिमा आदर और विस्मय को जन्म देती है।" विवेचन :- भारतीय काव्य-शास्त्र की शब्दावली में उपर्युक्त उद्धरणों में उदात्त के विभाव एवं भाव दोनों पक्षों का वर्णन है। विभाव से अभिप्राय भाव के कारण का है, और भाव का अर्थ है अनुभूति। इन वाक्यों में उदात्त भावना को जन्म देने वाले कारणों अर्थात्, उसके आलम्बन पक्ष का और उदात्त भावना के अनुभूति पक्ष का विवेचन मिलता है। विभाव पक्षः- (क) विभाव आलम्बन रूप में उदात्त के तत्व हैं:(i) अनन्त विस्तारः- (क) सम्पूर्ण विश्व भी पर्याप्त नहीं लगता और प्रायः हमारी कल्पना दिगन्त को पार कर जाती है।" 1. काव्य में उदात्त तत्व (डॉ० नगेन्द्र) पृष्ठ-99-100 2. काव्य में उदात्त तत्व (डॉ0 नगेन्द्र)पृ0 -100-101 15
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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