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________________ समुचित अंलकार योजना में लौंजाइनस मात्र चमत्कार प्रर्दशन के लिए अलंकारों के प्रयोग को सही नहीं माना। उसके अनुसार यह अधिक उपयोगी तब होगा जब अर्थ को उत्कर्ष प्रदान करे और मात्र चमत्कृत न करके पाठक को आनन्द प्रदान करे। अलंकार सर्वाधिक प्रभावशाली तब होता है जब इस बात पर ध्यान ही न जाय कि वह अलंकार है । अयत्नज अलंकार काव्य के प्रभाव को बढाते हैं और ये अलंकार एक प्रकार से काव्यात्मा हैं । प्राकृतिक अभिव्यंजना में अलंकारों का महत्वपूर्ण स्थान है, अतः उन्हें कृत्रिम मानना उचित नहीं है। इनका प्रयोग प्रासंगिक तथा परिस्थिति एवं उद्देश्य के अनुरूप होना चाहिए यदि ऐसा नहीं है तो भव्य से भव्य अलंकार भी कविता- कामिनी का श्रृंगार न बनकर वे उसके लिए बोझ बन जाएगें । उत्कृष्ट भाषा - प्रयोग के अन्तर्गत् लौंजाइनस ने वर्ण विन्यास - शब्द चयन तथा रूपक आदि के प्रयोग पर बल दिया है उसके अनुसार उदात्त - विचारों की सर्जना में साधारण शब्द - अनुपयोगी हो जाते हैं अतः गरिमामयी भाषा आवश्यक हो जाती है। शब्दों के सौन्दर्य से ही शैली गरिमामयी बनती है । सुन्दर शब्द ही विचारों को अभिनव आलोक प्रदान करती है लौंजानइस के अनुसार भाषा का वैशिष्ट्य और चरमोत्कर्ष ही उदात्त है यही एक मात्र स्रोत है जिससे महान कवियों और इतिहासकारों को जीवन में यश और प्रतिष्ठा मिलती है । गरिमामयी रचना- विधान में लौंजाइनस ने शब्द-विचार, घटना, कार्य, सौन्दर्य एवं राग आदि के विविध रूपों के सामंजस्य पर बल दिया और उसके अनुसार जिस प्रकार शरीर के विभिन्न अंगों की सुडौलता समानुपात एवं संतुलन में सौन्दर्य समाहित रहता है उसी प्रकार काव्य के विभिन्न अंगो के औचित्य निर्वाह से वह हृदय मनोरम बन पाता है। कवि को चाहिए कि वह स्थान, रीति, अवसर, एवं उदेश्य के प्रति पूर्ण स्वतन्त्र रहे। गरिमा के सम्पूर्ण तत्वों की संयुति से ही कृति महनीय उदात्त बनती है। 176
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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