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________________ कवि को महान बनने के लिए अपनी आत्मा में उदात्त विचारों का पोषण करना चाहिए। क्योंकि उदात्त महान आत्माओं की सच्ची प्रतिध्वनि है। जो आजीवन संकीर्ण-विचारों एवं उद्देश्यों से घिरा रहता है, वह स्तुत्य एवं अमर रचना नहीं कर सकता गंभीर विचार वालों के शब्द भी महान होते हैं। विषय के महत्व तथा अनुक्रम की श्रेष्ठता से काव्य में आनन्दातिरेक का तत्व आता है। जिसका तत्काल स्थायी प्रभाव होता है। महान कवियों की कृतियों के परायण से जो संस्कार प्राप्त होते हैं वे निश्चय ही श्रेष्ठ रचना के प्रणयन में सहायक होते हैं। भावावेग की तीव्रता के संबंध में लौंजाइनस का मत है कि आवेग-उन्माद, उत्साह के उदाम वेग से फूट पड़ता है और एक प्रकार से वक्ता के शब्दों को विस्मय से भर देता है उसके यथास्थान व्यक्त होने से स्वर्ण जैसा औदात्य आता है वह अत्यन्त दुर्लभ है। भव्य आवेग के परिणामस्वरूप हमारी आत्मा स्वतः उठकर मानों गर्व से उच्च अकाश में विचरण करने लगती है तथा हर्ष और उल्लास से भर जाती है। वज्रपात का पलक झपकाये बिना सामना संभव है, पर भावावेग के प्रभाव से अविचल-अछूता बना रह पाना सम्भव नहीं। हमारा स्वभाव है कि हम छोटी-छोटी धाराओं की अपेक्षा महासागर से अधिक प्रभावित होते हैं। औदात्य मनुष्य को ईश्वर के ऐश्वर्य के समीप तक ले आता है। उल्लास-आनंद देश-काल-निरपेक्ष होता है जो सदा सबको आनन्दित करता है वही औदात्य आवेग है। विस्मय-विमुग्ध करने वाला चमत्कारी भाव–परिवेश मानव में गरिमा को जन्म देता है। उदात्त उत्कृष्ट वही है, जो पाठक या श्रोता की चेतना को विमुग्ध या अभिभूत करे। आवेग दो प्रकार का बताया गया है- भव्य और निम्न। एक से आत्मा का उत्कर्ष होता है तो दूसरे से अपकर्ष। निम्न आवेग में दया, शोक, भय आदि के भाव आते हैं। उदात्त सृजन में वस्तुतः भव्य आवेग सहायक होता है। 175
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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