________________
कवि जगदेव, तुलसीदास और रवीन्द्रनाथ टैगोर से पूर्णतः प्रेरित और प्रभावित है। छन्दानुरूप भाषा -विन्यास उनमें प्रायः सर्वत्र दिखायी देता है। किन्तु निराला की कविताओं में विशेषकर दीर्घ-छन्दों के प्रयोग से उनकी भाषा महाकाव्योचित औदात्य का स्पर्श करती है। नई चेतना भूमियों की अभिव्यक्ति के लिए जिस गंभीरता से उन्होंने भाषा निर्माण का प्रयत्न किया वह सराहनीय है। उनकी समास-बहुला, पदावली भावानुकूल शब्द-योजना, अनेकानेक छन्द-प्रयोग नाद-वैशिष्ट्य उनके अपने हैं, निराले हैं। इतना अधिक विस्तार और गहराई अपने सांस्कृतिक परम्पराओं को इतने नवीन, पर काव्योचित ढ़ग से प्रस्तुत करने की अप्रतिम क्षमता किसी अन्य कवि में नही पायी जाती ।'
गरिमामय रचना-विधान :
यदि किसी कृति में शब्द, विचार, घटना, कार्य सौन्दर्य एवं राग आदि के विविध रूपों का सामंजस्य दिखायी दे तो उसका औदात्य अक्षुण बना रहता है। जिस प्रकार शरीर के विभिन्न अंगो की सुडौलता समानुपात एवं सन्तुलन में समाहित रहता है, उसी प्रकार काव्य के विविध अंगो में औचित्य निर्वाह से वह हृदय मनोहर बन जाता है। अन्यथा उसमें शैलीगत् दोष आ जाता है। कवि को चाहिए वह स्थान रीति अवसर आदि के प्रति पूर्ण सतर्क हो। गरिमा के सम्पूर्ण तत्वों की संयुति से ही कृति महनीय उदात्त बनती है। लौंजाइनस ने बिम्बों के निर्मात्री शक्ति के रूप में कल्पना तत्व की चर्चा की है। अनुभूति के क्षणों में कल्पना के सहयोग से कवि के मानस पटल पर जिस प्रकार के बिम्बों या चित्रों का निर्माण होता है। लौंजाइनस इसे 'ईपैथी' (सह-अनुभूति) कहता है, और उसे काव्य का एक आवश्यक गुण मानता है। किसी कवि की शक्तिमत्ता उसके अर्थ-गर्भ मार्मिक बिम्बों के सृजन में निहित होती है, निराला ऐसे ही प्रतिभा
1. निराला - संस्करण : इन्द्रनाथ मदान : पृष्ठ-182, 170
158.