________________
यहाँ "सन्ध्या-सुन्दरी' रूपी नायिका दुल्हन की तरफ अपना कदम धीरे-धीरे आगे बढ़ा रही है, यहाँ सन्ध्या-सुन्दरी का मानवीकरण किया है ।
कवि-निराला भगवान राम के अनन्य भक्त हुनमान को अपने आराध्य को कष्ट में देखकर चीत्कार उठने तथा साथ ही साथ अपने आराध्य राम के प्रति सर्वस्व न्योछावर करने का सफल काव्यमय चित्रण 'राम की शक्ति-पूजा' नामक कविता में देखने को मिलती है :
"ये अश्रु राम के आते ही मन में विचार; उद्धेल हो उठा शक्ति-खेल-सागर-अपार ।
वज्रांग तेजधन वना पवन को महाकाश;
पहुँचा एकादश रूद्र क्षुब्ध कर अट्टहास ।।" कवि निराला द्वारा यहाँ प्रकृति के भयंकरता का सुन्दर तरीके से वर्णन किया है। हनुमान और कुद्ध सागर के प्रयलंकर रूप का संशलिष्ट चित्र अंकित किया गया है। जलराशि का मानवीकरण स्पष्ट है।
महाकवि निराला भारतीय जन-मानस का विधवा नारी के प्रति बनी मानसिकता से काफी आहत महसूस करते थे तभी तो महाकवि ने भारतीय विधवा नारी के अन्तःमनोदश का चित्र काव्य में उतारा है :
__ "दूर हुआ वह वहा रहा है;
उस अनन्त पथ से करूणा की धारा ।।"2 एक विधवा नारी दुनिया वालों की बुरी नजरों से अपने को सफेद ऑचल में सजोए हुए अपने स्वत्व ही रक्षा करती है, भारतीय विधवा की अंर्तवेदना उसके जमीर को बार-बार झकझोरती है कभी-कभी वह अंर्तवेदना विद्रोह करने की
1. राम की शक्ति-पूजा : निराला रचनावली भाग (1) – पृष्ठ-332 2. 'विधवा' : निराला रचनावली भाग (1) - पृष्ठ-73
145